Thursday, 26 December 2019

अखंड भारत

Source : Internet

कोई लाया था एक टुकड़ा
गोंडवाना लैंड से तोड़कर
चप्पू चलाता हुआ
अंगारा लैंड में धंसा देने के लिए,
और फिर बोये थे सीमाओं पर कुछ पहाड़
हिंदूकुश और हिमालय सरीखे,
और उगाई थीं उनमें कुछ चोटियां
एवरेस्ट, कंचनजंगा और गाडविन-ऑस्टिन जैसी,
और उठाया था उन्हें विश्व की सर्वोत्तम ऊंचाइयों तक
क्योंकि वह बनाना चाहता था एक अजेय दुर्ग
उगाना चाहता था उनमें कुछ परंपराएं
और बनाना चाहता था उस टुकड़े को
संस्कृतियों का पालना।

Saturday, 21 September 2019

नहीं भूलूंगा तुमको।



नहीं भूलूंगा तुमको
ना ही अहसास तुम्हारा
सब याद रखूंगा अक्षरशः 
अपने समय के अंत तक,

रख लूंगा स्वयं में
सब कुछ-
तुम्हारी यादें
और वो फूल भी
जो तुमने
किताबों के बीच रखा था,

Saturday, 7 September 2019

चांद



बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद,
विक्रम लैंडर छुपा रहा है चाँद।

कैसा बैठा है छुपा के लैंडर,
'इसरो' को सता रहा है चाँद।

हमने बचपन में कहा था मामा,
आज क्युं रिश्ते भुला रहा है चांद।

कह दो कनेक्शन जोड़ दे फिर से,
के अब गुस्सा दिला रहा है चाँद।
***


copyright©2019

Friday, 30 August 2019

पुनर्मिलन



"अभी उठी नहीं तुम" नैना ने सिमरन का हाथ झिंझोड़ते हुए कहा "देखो देर हो जाए फिर मुझसे मत कहना"। अपनी बात को पूरा करके नैना किचन की तरफ चली गई। सिमरन ने तकिए का एक कोना उठाकर उसके नीचे से झांका और बदहवास सी मोबाइल खोजने लगी, समय देखा तो सुबह के 9:30 बज गए थे। चिल्लाती हुई बोली "कल जगाती! आज क्यों जगा दिया!" और गुसलखाने की तरफ तेजी से भागी। जल्दी से नहा धोकर, मेज पर रखा हुआ ब्रेड का टुकड़ा मुंह में ठूंसते हुए, बालों को संवारने लगी।

Tuesday, 20 August 2019

एक तस्वीर खींचनी है मुझे



एक तस्वीर खींचनी है मुझे
एक चेहरा नया बनाना है,

गीत-गजलों से रंग भरना है
और फिर रात भर सजाना है,

मुझे करनी है मोहब्बत उससे
उसको दिल के करीब लाना है,

आज बस उसको साथ रखना है
बाकी दुनिया को भूल जाना है,

एक तस्वीर खींचनी है मुझे।

***


copyright©2019

Monday, 5 August 2019

ऐतिहासिक फसला : अखण्ड भारत


आज भारत के हर नागरिक के लिए बहुत बड़ा दिन है, इंदिरा कॉल से इंदिरा प्वाइंट तक आज पहली बार केवल एक ही संविधान और एक ही झंडा पूरे भारत को अपने आगोश में समेटे नजर आ रहा है।

जब से भारतीय राजनीति और भारतीय संविधान में थोड़ी समझ विकसित हुई, तब से जम्मू कश्मीर के नुच्छेद 370 और 35A के बारे में सुनता रहा और बात करता रहा। मित्रों से काफी बहस होती थी, काफी बार तो झगड़े भी हो जाते थे लेकिन कभी कोई एक वास्तविक नतीजा निकल कर सामने नहीं आता था। क्योंकि यह अनुमान लगाना भी मुश्किल था कि कभी यह प्रावधान खत्म होंगे और हम कश्मीर को हृदय से अभिन्न हिस्सा मान पाएंगे।

Thursday, 1 August 2019

नए लड़के


कह रहे थे कुछ लोग
कि मर रही है हिन्दी
भूल रहे हैं सब
लिखना तो दूर
कोई पढ़ना ही नही चाहता
न कविताएं, न कहानियां
रिस रही है धीरे-धीरे,

मेैनें चाय पर बुलाया
उन लोगों को
और कुछ नये लड़कों को भी
उनके मोबाइल फोन
और लैपटाप के साथ,

Thursday, 25 July 2019

भागती लड़कियां


दिख रही है हजारों कविताएं
सारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर
प्रेम को ही स्वतंत्रता मान चुकी 
एक लड़की के क़सीदे में,

वे कविताएं
शायद भूल जाती हैं
मुथैया विनीथा को
रितु करिधाल को
हिमा दास को

Tuesday, 23 July 2019

हिमा दास : ढ़ीग एक्सप्रेस



एक पुत्री भारत मां की
दौड़ रही है
पैरों में पंख बांध,

तोड़कर सारी जंजीरे
और बंन्धन
गरीबी और जातिवाद सरीखे,

Thursday, 18 July 2019

शब्द मिलते नहीं बनाता हूं।


शब्द मिलते नहीं बनाता हूं,
मैं एक कारखाना चलाता हूं।
लिखता हूं कविताएं और किस्से,
फिर उन्हें आग में जलाता हूं।
प्यार भी करके मैंने देखा है,
और अब उससे खौफ खाता हूं।
जब से वो दूर हो गया मुझसे,
खुद से भी कम ही मिलने जाता हूं।
अब तो बस तार-तार होता हूं,
फिर एक नई आकृति बनाता हूं।
कभी सीखी थी शायरी मैनें,
आज लिखता हूं और गाता हूं।
---


copyright©2019

Wednesday, 3 July 2019

एक कवि की मौन पीड़ा


वो एक कवि
जो लिखना चाहता है
वर्तमान परिस्थितियों पर कविता
तीक्ष्ण व्यंग
कुछ कटाक्ष भी
और संग्रहीत कर देना चाहता है
अपने संकलन में,
      
जिससे
आने वाली पीढ़ियां
यह ना कह पाएं
कि तुम मौन क्यों थे
क्यों नहीं लिखा तुमने सच
जो तुम्हारी आंखों के सामने हो रहा था
कहां छुपे हुए थे तुम
प्रेमिका के पल्लू या जुल्फों में तो नहीं।

Monday, 1 July 2019

याचना



तुम ये जो लिखते रहते हो
हर रोज़
कविताएं,
कहानियां,
गजलें,

कहां से लाते हो इतने शब्द
और ये भावनायें सारी
क्या मिल गया है
कोई अक्षय-पात्र
या करते हो कोई साधना

Thursday, 27 June 2019

मेरी जिजीविषा



मैं नित्य तोड़ता हूं खुद को,
फिर चारो तरफ बिखर जाता हूं।

कभी शब्द बनकर..
कभी अहसास बनकर..

और बस जाना चाहता हूं..
तुममें..उनमें..सबमें..

जिससे जीवित रह सकूं
समय के अन्त तक,

और जी सकूं हर दिन
अनन्त नया जीवन,

अनादि काल तक।


copyright©2019

Wednesday, 26 June 2019

तकनीकी सहिष्णु


वे लोग
जो तख्तियों पर लिख कर बड़े हुए हैं
आज लिखते हैं
कहानियां..
कविताएं..
गजलें..

लेकिन जिन को मिला
वरदान विज्ञान का
जीवन शुरू किया
टेबलेट और कम्प्युटर से,

Tuesday, 25 June 2019

विदा मित्र


जब से मैंने जन्म लिया, स्थान बदलना तो जैसे मेरी नियति का एक हिस्सा हो गया है। शायद मेरी कुंडली का वह ग्रह, जिससे मैं परिभाषित होता हूं, सदैव चलायमान रहता है। 5 वर्ष की अवस्था से यह प्रक्रिया शुरू हुई और आज भी अपने अभीष्ट तक नहीं पहुंची है। उत्तर प्रदेश राज्य के, गोंडा जनपद में जन्म लेने के उपरांत सर्वप्रथम बहराइच, फिर फैजाबाद, फिर लखनऊ, इलाहाबाद और अब भारतीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली। कुल 22-24 साल की यात्रा का इतिहास समेटे हुए मैं आज भी चालित हो रहा हूं। हां इसमें से कोई भी यात्रा मनोरंजन आदि के लिए नहीं थी, बल्कि स्वयं को स्थापित करने के लिए एक आधार की खोज में या यूं कहूं कि कलयुगी निर्वाण की प्राप्ति के लिए थी।

Wednesday, 19 June 2019

रास्ते और जीवन


मै भटका नहीं हूं,
बस छोड़ दिए हैं पुराने रास्ते
और एक नया रास्ता गढ़ रहा हूं,
क्योंकि सड़ गये हैं सभी पुराने
दुर्गंध आती है उनसे,

Monday, 17 June 2019

छत वाला प्यार

Source : Google

तुमसे रोज मिलता हूं। छत के उसी कोने में, जहां से तुम दिखती थी मुझे। जब भी छत पर आता हूं, अनायास ही नजरें वहीं पहुंच जाती हैं। घण्टों खड़ा निहारता रहता हूं। कभी-कभी तुम प्रकट भी हो जाती हो-देवी सी, तब खुद को चिकोटी काट कर वास्तविकता में फौरन वापस लौटता हूं, क्योंकि तुम्हारी सुन्दरता स्वप्नलोक में चौगुनी हो जाती है जो मेरी आंखे सम्भाल नहीं पातीं।

Friday, 14 June 2019

मैं और लेखन



मै नहीं हूं कोई कवि

बस लिखता हूं अपना दर्द
और तकलीफें,

कभी-कभी बताता हूं
खुशियां भी,

प्रेम-प्रसंग और
तत्कालीन परिस्थितियां,

जीवन के अनुभव,
सुख-दुख और
संस्मरण सारे,

लोग कहते हैं
कि कविता है यह,

पर नहीं,
यह है सब मेरा जिया हुआ।
मेरा जीवन।

***


©Copyright reserved..

Thursday, 6 June 2019

ग्लोबल विलेज़



पगडंडियाँ खत्म हो गई हैं गांव में

उनकी जगह ले ली है
तारकोल में सनी गिट्टियों ने
कुछ ईंटों ने भी,
रास्ता हो गया है सुगम
बाजार से गांव तक,
अब तो 
गाड़ी मोटर भी दौड़ते हैं उन पर
तेज बहुत तेज,

Wednesday, 5 June 2019

एक मधुर संबंध की सालगिरह।

Source : weheartit.com

4 जून 2018 की मध्य-रात्रि थी, बारिश की हल्की-हल्की फुहारें पड़ रही थीं और मैं अपने दिल्ली के आवास की छत पर कदमताल कर रहा था। मैंने उन दिनों कुछ-कुछ कवि बनना और कविताएं लिखना शुरू किया था। कुछ शब्दों को चुराता था, यहां-वहां जोड़ता था, फिर बुद्धिमत्ता की छैनी-हथौड़ी से तुक मिलाता था और एक कविता बनाता था। बड़ी सस्ती-सी, बड़ी हल्की सी, पर मुझे बेहद पसंद, क्योंकि वह मेरी अपनी रचना होती थी। हां! मैं आज भी कोई बड़ा कवि या लेखक नहीं हूं, लेकिन एक साल का अनुभव है मेरे पास, इसलिए यह कह सकता हूं कि २०१९ के नए दीवानों से थोड़ा अच्छा जानता हूं।

Wednesday, 22 May 2019

सोचता हूं।



सोचता हूं
कि सोचना ही बंद कर दूं
क्योंकि कुछ नहीं होने वाला
केवल सोचने से,

देश-दुनिया के बारे में सोचता हूं
नए बदलाव के बारे में सोचता हूं
नए विचारों के बारे में भी सोचता हूं
लेकिन रूप नहीं दे पाता
बस सोचता रह जाता हूं।

Tuesday, 21 May 2019

चुनाव, एक्जिट पोल और लोग


चुनाव हो गए हैं खत्म
आ गए हैं एग्जिट पोल भी
और छेड़ दिया है
तू-तू मैं-मैं के एक अनोखे तार को,

यहां जीतता नहीं कोई
बस हराने में लगे हैं
अपने विरोधियों को 
और उनके सहयोगियों को,

Friday, 17 May 2019

एक कहानी



एक कहानी पढ़ रहा हूं
अधूरी लग रही है
टूटन भी है इसमें,

ऐसा लगता है
जैसे किसी ने
सच लिख दिया हो
अपना सच,

सपनें

Image Source : Internet

इक दिन देखा था उपवन में
घूम रही थी सुबह सवेरे
इक छाया मेरी अपनी सी
इक आकृति मेरे सपनों की,

सजल नयन जब पास गया तो
नहीं मिला कोई भी अपना
नही मिली वह आकृति भी
निकलकर जो झुरमुट से बासों के
खलिहानों में खत्म हो गयी,

Friday, 3 May 2019

पत्रकारिता

Source : Internet


तुम्हारी स्वतंत्रता तुम्हें मुबारक
लेकिन हमारे सच से मत खेलो।

चंद चाटुकारों की खातिर
जो करते हो अधर्म,
नाश हो जाएगा
मिट जाओगे
भरोसा तो बंद ही हो चुका है।

Wednesday, 1 May 2019

एक प्रहसन

Image Source : GOOGLE


एक प्रहसन चल रहा है
मेरे अंदर,

कुछ पात्र नए गढ़ रहा हूं
कुछ को हटा रहा हूं
जीवन से,
बदल रहा हूं कुछ नियम भी
और उनके दाग़ सारे,

Sunday, 28 April 2019

एक नग़मा


आज उनका फोन आया

कह रहे थे कि
तुम्हारी याद में हमने
लिखा है एक नगमा,

आसमां पर तारे लिखे हैं
चांद चमकीला लिखा है
फूल में खुशबू लिखी है
औ रंग-बिरंगी तितलियां भी,

आधुनिक कलयुग


देखता हूँ आजकल 
Whatsapp पर
Facebook पर
Twitter पर,

चल रहीं है चर्चाएं
जीवन पर
प्यार पर
राजनीति पर,

Thursday, 14 March 2019

यादों का पिटारा 1.O (याद-ए-बहराइच)



आज वर्षों बाद बचपन की तरह सवेरा हुआ; वही पक्षी, वही कलरव, वही मंद सुगंधित हवा का हौले से स्पर्श करके भाग जाना। पेड़ों से झांकता हुआ सूरज किसी पुराने बिछड़े मित्र की तरह लग रहा था, जिससे मैनें अपनी भौतिक जरूरतों की पूर्ति हेतु किनारा कर लिया है। और हाँ नदी पर भी गया था मैं, अरे हाँ वही नदी जिसकी मछलियों को स्वजनों से अधिक स्नेह करता था मैं। जब तक उंगलियों मे फंलाकर आटे की गोलियां उन्हें खिला न दूँ, भूख नही मिटती थी मेरी। वो टूटी नाव, वो झीनी पतवार, वो फिसलन भरी मिट्टी की दरारें, वो गुरगुट की छलांग एक के बाद एक सारे मंजर आंखो के सामने ऐसे आ रहे थे जैसे किसी बड़े पर्दे पर चलचित्रों का प्रदर्शन हो रहा हो।

Thursday, 14 February 2019

जो तुम मिले तो चल दिए।



जो तुम मिले तो चल दिए

न मंजिलों की आरजू, न ज़ेहन में कोई राह थी,
तुम्हारी बात सुनके हम, तुम्हारे रंग में रंग के हम।

न कोई गम न कोई डर, लेकर चराग़-ए-रहगुज़र,
तुम्हारा होने के लिए, तुम्हारे साथ चल दिए।

तुम्हारे संग जीने को, तुम्हारे संग मरने को,
इस जिंदगी की हाला को, तुम्हारे संग पीने को।

तुमने कहा जो आने को, दुनिया नई बसाने को,
सब बंधनों को तोड़कर, रिश्ते-रिवाज़ छोड़ कर।

तुम्हारी बात सुनके हम, कुछ स्वप्न नए बुनके हम,
तुम पर हम ऐतबार कर, तुम्हारे साथ चल दिए।

जो तुम मिले तो चल दिए..


❤️❤️❤️