आज भारत के हर नागरिक के लिए बहुत बड़ा दिन है, इंदिरा कॉल से इंदिरा प्वाइंट तक आज पहली बार केवल एक ही संविधान और एक ही झंडा पूरे भारत को अपने आगोश में समेटे नजर आ रहा है।
जब से भारतीय राजनीति और भारतीय संविधान में थोड़ी समझ विकसित हुई, तब से जम्मू कश्मीर के नुच्छेद 370 और 35A के बारे में सुनता रहा और बात करता रहा। मित्रों से काफी बहस होती थी, काफी बार तो झगड़े भी हो जाते थे लेकिन कभी कोई एक वास्तविक नतीजा निकल कर सामने नहीं आता था। क्योंकि यह अनुमान लगाना भी मुश्किल था कि कभी यह प्रावधान खत्म होंगे और हम कश्मीर को हृदय से अभिन्न हिस्सा मान पाएंगे।
जिन लोगों को अनुच्छेद 370 और 35A के बारे में नहीं पता उन्हें बता दूं कि राष्ट्रपति के एक विशेष आदेश से कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था, क्योंकि उस समय वहां परिस्थितियां बहुत ही नाजुक थी, इसलिए ऐसा करना उस समय के भारतीय राजनीतिज्ञों को उचित लगा था। जिसके अनुसार भारत के हर राज्य से इतर जम्मू और कश्मीर राज्य के पास अपना अलग संविधान और झंडा था। हां अंतरराष्ट्रीय संबंध और संचार और सुरक्षा भारत सरकार के पास ही था। कई बार भारत राज्य क्षेत्र के अंतर्गत लागू होने वाले कानून वहां लागू नहीं होते थे। भारतीय दंड संहिता की जगह वहां अलग दंड संहिता भी थी, जिसे 'रनवीर दंड संहिता' के नाम से जाना जाता था। जम्मू कश्मीर इकलौता राज्य था, जिस के नागरिकों को दो नागरिकता प्राप्त थी, एक जम्मू-कश्मीर राज्य की दूसरी भारतीय गणराज्य की। जम्मू-कश्मीर राज्य से बाहर का कोई भी नागरिक ना तो वहां जमीन खरीद सकता था और ना ही बस सकता था। यहां तक कि यदि जम्मू-कश्मीर की कोई महिला किसी अन्य राज्य के पुरुष के साथ विवाह कर लेती है तो उसके जम्मू-कश्मीर राज्य के अंतर्गत नागरिकता के सभी अधिकार समाप्त हो जाते थे।
मैं हरी सिंह जी और मा० जवाहरलाल नेहरू जी के समझौता विवाद पर नहीं जाऊंगा, लेकिन फिर भी बता दूं कि स्वतंत्रता के साथ ही पैदा हुए इस नासूर ने भारतीय जनता को न केवल परेशान किया बल्कि हमने न जाने कितने वीर सैनिकों को कश्मीर की रक्षा करते हुए खो दिया। आजादी के 70 साल बाद भी हर दिन जम्मू और कश्मीर में एक नई आतंकवादी घटना होती है और उसको ठीक करने के अंतर्गत हमारे 1-2 सैनिक शहीद हो जाते हैं। वहां के उग्रवादियों द्वारा सेना पर पत्थर फेंकना और सैनिकों को गालियां देना और मारना बड़ी हृदय विदारक घटना होती है।
यह कोई साधारण बात नहीं है। हम एक ऐसी जंग लड़ रहे थे जिसका हमें कोई अंत ही नजर नहीं आ रहा था। क्योंकि जनता की जरूरतों से ज्यादा वह राजनीतिक महत्व का क्षेत्र बन गया था और जब भी कोई स्थान या विषय राजनीतिक महत्व का बन जाता है तो फिर दृढ़ इच्छाशक्ति ही उसका समाधान कर सकती है। नहीं तो सत्ता के लोलुप लोग अपने फायदे के लिए उसका इस्तेमाल करने लगते हैं और पिछले 70 साल से कश्मीर में यही होता आया था। आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक तो कश्मीर के अलगाववादी नेता और मुख्यधारा के राजनीतिक लोग बन गए थे। जो पड़ोसी देश पाकिस्तान से पैसे लेकर के जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में उग्रवाद फैलाते थे।
मैं किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लेना चाहता क्योंकि आरोप-प्रत्यारोप मेरा काम नहीं है। मैं बस विषय को आपके सामने रखना चाहता हूं।
आज का ऐतिहासिक फैसला जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों को निश्चित ही विकास की मुख्यधारा से जोड़ेगा, भारत सरकार के गृह मंत्री अमित शाह जी के अनुसार जम्मू-कश्मीर राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया है पहला जम्मू कश्मीर, दूसरा लद्दाख। इस प्रस्ताव के पक्ष में राज्यसभा में 125 मत पड़े तथा विपक्ष में 61 मत पड़े और यह लोकसभा में चर्चा के लिए लिस्ट कर दिया गया है, जहां पर सरकार का बहुमत होने की वजह से निश्चित है कि अब यह कानून पूर्णतः प्रभाव में आ ही जाएगा। मात्र यही परिवर्तन कर देने से कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान अपने आप अस्तित्व विहीन हो गए हैं साथ ही 35A भी। अब केंद्र सरकार सीधे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों की कानून व्यवस्था और विकास के ढांचे को गति दे पाएगी और व्यवस्थित कर पाएगी।
इस बड़े बदलाव से वैश्विक और भारतीय निवेशक भी जम्मू कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों में उद्योग धंधे आदि के द्वारा विकास के कार्यों में संलग्न हो पाएंगे। हाल ही में जम्मू कश्मीर में एक "इन्वेस्टर सम्मिट" होने वाली है जिसका पूरा फायदा वहां की जनता को मिलना संभव होता दिख रहा है। अब हम कह सकते हैं कि संपूर्ण भारत अब बहुत तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ने वाला है।
मैं, ऋषि द्विवेदी भारत के विकास के लिए जरूरी भारत सरकार के हर फैसले का समर्थन करता हूं और सरकार द्वारा उठाए गए हर कदम पर मैं सरकार के साथ हूँ।
अब कोई कश्मीरी नहीं रहा सब भारतीय हो गए।
सभी भारतवासियों को आकाशभर बधाई!
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