लौटने में एक सुखद आकर्षण है; आत्मीयता का एक भाव है; संभावनाओं का द्वंद्व है। कितना कुछ है जो लौटने के सौंदर्य को परिभाषित करने के लिए उदाहरण स्वरूप उँगलियों पर गिनाया जा सकता है।
आज मानसून लौट रहा है; मानसून के लौटने को मानसून का प्रत्यावर्तन कहते हैं और आज प्रयाग इस लौटे प्रेम से अपना अंतस् भिगो रहा है। कहते हैं नमी संवेदनाओं की सबसे गहरी अभिव्यक्ति है।
भूगोल वाले और गहरे से जूझते हैं इसमें। वे बताते हैं कि भूमध्य सागर से उठी नम हवाएँ आगे बढ़ पूर्व की ओर कैस्पियन सागर से उठती नम हवाओं को अपने आग़ोश में ले भारत की ओर चल निकलती हैं और हिंदूकुश से दो फाड़ हो चली आती हैं दबे पाँव।
महावर लगे पैर हौले चलते हैं इसलिए प्रत्यावर्तन की बारिश में भी लास्य है, औदार्य है, संवेदना है; धरती भीगती है और मिट्टी की महक सर्वत्र बिखर जाती है, वैसे ही जैसे गर्मी की शामों में दुआर छीटों से भिगोया जाता है। न ज़्यादा न कम; एक सम्यक् प्रेमलिप्त संबंधों की अनुपम रूपरेखा!