जब से मैंने जन्म लिया, स्थान बदलना तो जैसे मेरी नियति का एक हिस्सा हो गया है। शायद मेरी कुंडली का वह ग्रह, जिससे मैं परिभाषित होता हूं, सदैव चलायमान रहता है। 5 वर्ष की अवस्था से यह प्रक्रिया शुरू हुई और आज भी अपने अभीष्ट तक नहीं पहुंची है। उत्तर प्रदेश राज्य के, गोंडा जनपद में जन्म लेने के उपरांत सर्वप्रथम बहराइच, फिर फैजाबाद, फिर लखनऊ, इलाहाबाद और अब भारतीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली। कुल 22-24 साल की यात्रा का इतिहास समेटे हुए मैं आज भी चालित हो रहा हूं। हां इसमें से कोई भी यात्रा मनोरंजन आदि के लिए नहीं थी, बल्कि स्वयं को स्थापित करने के लिए एक आधार की खोज में या यूं कहूं कि कलयुगी निर्वाण की प्राप्ति के लिए थी।
मित्र भी अनेक बने, पहले टॉफी-बिस्कुट साझा करने वाले, फिर कॉपी-किताब, पेन-पेन्सिल आदि साझा करने वाले, फिर विचारों को साझा करने वाले, कुछ सुख-दुख साझा करने वाले भी और हां कुछ दिल भी साझा करने वाले।
हर बार जब भी का स्थान बदलता तो कुछ अपने छूट जाते और हर बार उस मानसिक टूटन की अवस्था में स्वयं को नई जगह स्थापित करना पड़ता, नए मित्र बनाने पड़ते। यह एक बार हो तो कोई बात नहीं, लेकिन जब ऐसी अवस्था आपके जीवन में बार-बार आती है तो आप इसके आदी हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। अपनों के साथ की यादों को संजोने की जो कला मुझ में विकसित हुई उसने मुझे काफी हद तक स्थिर बना दिया, लेकिन अपनों का छूटना और आत्मीयता का बिखरना हमेशा प्रथम विलगन की तरह ही कष्टकर रहा।
आज भी जब लगभग 2 साल से साथ रह रहे मित्र विपुल मिश्रा जी को विदा देने का समय आया तो पुनः विलगन का वही कष्ट उभर कर बाहर आ गया। अभ्यस्त हूं इसलिए जाहिर नहीं होने दिया, लेकिन जल्दी-जल्दी उनको कैब में बैठाकर वहां से हट लिया। ऐसा लगा रहा था अभी एक सैलाब टूट पड़ेगा, लेकिन मैंने खुद को संभाला। कण्व की जो स्थिति शकुन्तला की विदा के समय थी उसी अवस्था से मैं भी गुजर रहा था-
कण्ठः स्तम्भितबाष्पवृत्तिकलुषश्चिन्ताजडं दर्शनम्।
विपुल जी के बारे में क्या कहूं। मेरे स्वभाव में तारीफ करना नहीं है, इसलिए तारीफ करने वाले शब्दकोष की कमी है मेरे पास। फिर भी इतना जरूर कहूंगा कि जिन पर ईश्वर की असीम कृपा होती है उन्हें ऐसे मित्र नसीब होते हैं। गुणों की खान है विपुल जी। मित्र से लेकर मां तक के सारे गुण विद्यमान हैं उनमें। एक योग्य व्यक्ति, अच्छा प्रबंधक, कुशल भोजन-निर्माता, अप्रतिम सलाहकार, इतने गुण की उंगलियों पर नहीं गिने जा सकते। यदि रात के 2:00 बजे घोर निद्रा की अवस्था में भी उनको फोन करके किसी कार्य के लिए कहा जाए तो ऐसा लगता है जैसे उसी कार्य को करने के लिए वे तैयार बैठे थे। अद्भुत हैं विपुल जी, अतुलनीय हैं।
अब यदि स्नेही ऐसा है तो कष्ट भी अपने उत्तुंग व्यवस्था पर पहुंच जाता है। फिर भी खुद को समझा रहा हूं, यह तो मेरी जीवन-कुंडली का ही दोष है कि आत्मीयता कभी मेरे हिस्से नहीं रही। जीवन में पुनः नए मित्र मिलेंगे, नया सम्बन्ध मिलेगा पर जो पन्ना हमने और विपुल जी ने अपनी मित्रता को जीते हुए लिखा है ईश्वर करे वह सदैव शाश्वत रहे और हम युं ही अपने समय के अन्त तक एक दूसरे का सानिध्य, प्रेम व मित्रता प्राप्त करते रहें।
विपुल जी! जीवन के हर अवरोध से लड़ने की शक्ति ईश्वर आपको प्रदान करें। मैं आपको जानता हूं, अतः कह सकता हूं कि आप वह सब-कुछ प्राप्त कर लेंगे जो आप चाहते हैं। ईश्वर सदैव आपके साथ रहें।
और हाँ आपकी पकौड़ी और पनीर का स्वाद ना भूलेंगे हम।
बहुत सारा प्यार ❤
- ऋषि
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