यादों को भुलाने के प्रयास में अभी बहुत दिन नहीं बीता, रोज घर से बाहर खलिहान में लगे सरकारी नल पर बैठकर तुम्हारे आने-जाने के रास्ते को तकता रहता हूं। हां यह अलग बात है कि जब इसी रास्ते से तुम्हारी डोली जा रही थी तो मैं मम्मी के कमरे की खिड़की से झांक रहा था, पता नहीं क्युं हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि दहलीज लांघ कर तुम्हारी जुदाई का आलिंगन कर पाऊं।
Saturday, 11 April 2020
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