Wednesday, 20 May 2020

एक अधूरी कहानी का अंत


अभी भी जब किसी कारणवश छत पर आता हूं तो अनायास ही नजरें तुम्हारे छत और छज्जे की ओर चली जाती हैं। प्रेम से उपजी स्मृतियां अपना रास्ता कभी नहीं भूलतीं। बहुत रोकने के बाद भी आंखों का भाग कर तुम्हारे हिस्से की ओर चले जाना कभी-कभी शर्मिंदगी का सबब भी बन जाता है।

जिस तरह कोई फल खाते हुए पहले मीठा, फिर कसैला और अंत में स्वाद-हीन हो सूख जाता है, उसी प्रकार विलगन की वेदना भी पहले अत्यंत पीड़ादायक, फिर कसैली और अंत में स्वाद-हीन हो सूख जाती है। प्रतीत हो रहा है जैसे हमारे विलगन की वेदना भी स्वाद-हीन हो सूखने की तरफ अग्रसर है। अब तुम्हारे छज्जे पर कोई अपनत्व नहीं दिखता। ऐसा लगता है जैसे सूरज की तीक्ष्ण किरणों ने तुम्हारे छज्जे पर रखे, मेरे इश्क की स्मृति से पैदा हुए अपनत्व को वाष्पित कर कहीं और, किसी अन्य की भूमि पर बरसा दिया है।