कि मर रही है हिन्दी
भूल रहे हैं सब
लिखना तो दूर
कोई पढ़ना ही नही चाहता
न कविताएं, न कहानियां
रिस रही है धीरे-धीरे,
मेैनें चाय पर बुलाया
उन लोगों को
और कुछ नये लड़कों को भी
उनके मोबाइल फोन
और लैपटाप के साथ,
सुनवायी कुछ कहानियां
नए किस्से
इश्क से लबरेज़
कुछ आख्यान भी
जो पहले लिखे ही नही गए
संस्कार की भाषा में
नया चिन्तन
बदलाव की हवा
और भी बहुत कुछ,
जब खत्म हुई महफिल
जाने लगे 'वे लोग'
तब कहते सुना मैने
कि बहुत अच्छा लिख रहे हैं
नए लड़के
और यह भी कि
कुछ खत्म नहीं होने देंगे
सब सम्हाल लेंगे
ये नए लड़के।
***
- ऋषि
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