Wednesday, 22 May 2019

सोचता हूं।



सोचता हूं
कि सोचना ही बंद कर दूं
क्योंकि कुछ नहीं होने वाला
केवल सोचने से,

देश-दुनिया के बारे में सोचता हूं
नए बदलाव के बारे में सोचता हूं
नए विचारों के बारे में भी सोचता हूं
लेकिन रूप नहीं दे पाता
बस सोचता रह जाता हूं।

सब रह जाता है निरर्थक
और फिर सोचने लगता हूं
उसे सार्थक बनाने के लिए
फिर सोचते-सोचते
सोचता ही रह जाता हूं
जैसे एक नशा कर रहा हो कोई
विचारों का, सोच का

इसीलिए सोचता हूं
बंद कर दूं सोचना
और सोचते रह जाना,
चला जाऊं भगवा चागर ओढ़कर
हिमालय कि कंदरा में
बैठ जाऊं अटूट समाधि में
और सुधार लूं
जीवन के उस पार का जीवन
जिसके बारे में अभी सोच रहा हूं।


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