आज महाशिवरात्रि है। वर्ष की 12 शिवरात्रिओं में महाशिवरात्रि को विशेष दर्जा प्राप्त है। हो भी क्यों ना, आज मेरे आराध्य शिव का विवाह हुआ था, मां पार्वती के साथ। कुछ लोग सृष्टि की शुरुआत के तौर पर भी इस दिन को पूजते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी (आज दोपहर २:३० तक त्रयोदशी है) को महाशिवरात्रि का महापर्व आयोजित किया जाता रहा है और जैसा कि आज वही तिथि है तो आयोजन भी शुरू हो गए हैं।
लोग व्यस्त हैं। सबको सुबह नहा-धो कर, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा, गाय का दूध, चंदन, रोली, केसर, भस्म, कपूर, दही, मौली, अक्षत्, शहद, मिश्री, धूप, दीप, हल्दी, नागकेसर, फल, गंगा जल, वस्त्र, जनेऊ, इत्र, कुमकुम, पुष्पमाला, शमी पत्र, खस, लौंग, सुपारी, पान, रत्न-आभूषण, इलायची, फूल, आसन, श्रंगार की सामग्री, पात्र और दक्षिणा आदि लेकर मंदिर जाने की जल्दी है। दुकान वालों के पास भी चढ़ावे कम पड़ रहे हैं। मंदिरों में एक अजब-सा प्रतिस्पर्धात्मक समन्वय है। भक्त एक दूसरे को भावमय नजरों से देख रहे हैं और उनके लिए रास्ता बना दे रहे हैं। कोई धक्का-मुक्की नहीं है, बस सब शिवमय है। प्रतीत होता है मानो शिव लास्य तांडव में मग्न है और संपूर्ण जगत मुग्ध हुआ जाता है।