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एक प्रहसन चल रहा है
मेरे अंदर,
कुछ पात्र नए गढ़ रहा हूं
कुछ को हटा रहा हूं
जीवन से,
बदल रहा हूं कुछ नियम भी
बदलना है उनको भी
हो गया है जरूरी,
क्योंकि यादें भी मिटा रहा हूं
सारी
अपनी तुम्हारी हमारी सब,
बस खाली हो जाना चाहता हूं
क्योंकि पीना है नया जीवन
जीना है नया प्रहसन
और गढ़ने हैं कुछ नए पात्र,
यही अब युगधर्मिता है
नहीं बदलूंगा सब
तो सब
बदल देंगे मुझे
अस्तित्व विहीन हो जाऊंगा
प्रासंगिकता भी हो जाएगी
समाप्त,
इसलिए करना है कुछ
आवश्यक बदलाव
बनाना है नया ऋषि
और देखने हैं
कुछ नए स्वप्न पुनः,
इसलिए
चल रहा है जो एक प्रहसन
देना है उसे रूप यथार्थ वाला
वास्तविकता से परिपूर्ण
एक नवजीवन
नवकल्पनाशीलता के साथ
जो हो प्रासंगिक वर्तमान में
अंदर और बाहर,
वही प्रहसन चल रहा है
मेरे अन्दर।
***
- ऋषि
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