Thursday, 24 November 2022

तो क्या हो अगर

 


तो क्या हो के तुम एक दुनिया बनो
और मैं बस पहाड़ों के उसपार बहते
हजारों लहरादर झरनों की तस्वीर में
रंग भरता हुआ
पेड़ पर घोंसलों को बनाता हुआ
और उनमें जीवन बसता हुआ
अपने टूटे खयालों में उलझा हुआ
दूर तक बहते दरिया में बहता हुआ
तुमसे आकर मिलूं;

भूगोल और मैं



महीनों बाद आज जी० सी० लियोंग को पलटने लगा तो बचपन के और भूगोल पढ़ने की शुरुआत के दौरान के वाकए याद आने लगे। सामान्य छात्रों की तरह पहले मुझे भी लगता था कि पृथ्वी गोल नहीं बल्कि चपटी है और आसमान एक कनोपी की तरह छाया हुआ है। दूर क्षितिज की तरफ देखता तो लगता कि वहां दूर एक जगह है जहां आसमान धरती से मिल रहा है। सोचता कि बड़ा होऊंगा तो उस छोर की यात्रा पर जाऊंगा और आसमान को छूकर देखूंगा; साथ ही उस लाल होते सूरज को भी, जो सुबह और शाम उसी धरती से क्रमशः उगता और धंसता प्रतीत होता है।

फिर एक दिन किसी शाम ईश्वर ने भूगोल पढ़ने की प्रेरणा दी तो पता चला कि एक मंदाकिनी नामक आकाशगंगा है और उसमें एक छोटा-सा सौर मंडल है; जिसका प्रमुख ग्रह सूर्य है, जो एक जलता हुआ पिंड है और उसके चारो ओर कुछ गोले चक्कर लगाते हैं जिनकी संख्या 8 या 9 है। पृथ्वी उन्हीं गोलों में से एक गोला है और गोल्डीलॉक्स जोन में होने के कारण इस पर जीवन संभव है इसीलिए हम प्राणी यहां विचरण करते हुए अपनी शक्तियों का अभ्यास करते हैं; एकदम दिमाग़ ही भन्ना गया।