Friday, 30 August 2019

पुनर्मिलन



"अभी उठी नहीं तुम" नैना ने सिमरन का हाथ झिंझोड़ते हुए कहा "देखो देर हो जाए फिर मुझसे मत कहना"। अपनी बात को पूरा करके नैना किचन की तरफ चली गई। सिमरन ने तकिए का एक कोना उठाकर उसके नीचे से झांका और बदहवास सी मोबाइल खोजने लगी, समय देखा तो सुबह के 9:30 बज गए थे। चिल्लाती हुई बोली "कल जगाती! आज क्यों जगा दिया!" और गुसलखाने की तरफ तेजी से भागी। जल्दी से नहा धोकर, मेज पर रखा हुआ ब्रेड का टुकड़ा मुंह में ठूंसते हुए, बालों को संवारने लगी।

आषाढ़ मास की सुबह, सूरज काली चादर ओढ़े ऊपर की ओर चढ़ रहा था। ऐसी स्थिति में मोबाइल जैसे उपकरण से ही समय का वास्तविक पता लगाया जा सकता था क्योंकि आज कमरे में धूप भी नहीं आई।

सिमरन आज राघव से मिलने जा रही थी। 4 साल की जान-पहचान और बातचीत के बाद अभी 2 महीने पहले ही राघव ने सिमरन को अपने दिल का हाल बताया था। सिमरन तब से खुशियों के एक अनबूझे संसार में विचरा करती थी। हो भी क्यों ना प्रथम प्यार का एहसास बहुत अनोखा होता है और जबकि सिमरन का यह पहला प्यार था तो सिमरन उसी अनोखेपन में गुम रहती थी।

आज राघव को घर जाना था क्योंकि रक्षाबंधन की छुट्टियां शुरू हो गई थी और इस बार वाला रक्षाबंधन अपनी बहन अपर्णा के साथ बिताना चाहता था। पिछले रक्षाबंधन के समय एग्जाम नजदीक होने की वजह से घर नहीं जा पाया था। शाम 5:00 बजे की ट्रेन थी और बीते शाम ही उसने अपनी सारी तैयारियां पूरी कर ली थीं। बहन के लिए बड़ा सा गिफ्ट, मां के लिए गुजराती साड़ी, पिताजी के लिए लखनवी कुर्ता, दादाजी के लिए कोल्हापुर चप्पल या यूं कहूँ की पूरी दुकान बनकर जा रहा था इस बार। आखिर परिवार के प्यार का साल भर का कर्ज भी तो अदा करना था।

सिमरन भी इजहार-ए-इश्क के बाद पहली बार राघव से मिल रही थी। वैसे तो वे दोनों हजारों बार मिल चुके थे, लेकिन इस बार का मिलना, सूख रही फसल पर पहली बारिश की पहली फुहार की तरह था और सिमरन इस बारिश में पूरी तरह भीग जाना चाहती थी।

उसने बाल ठीक किए, कपड़े पहने, थोड़ा लाइट मेकअप किया  और फिर आईने को घूर कर देखा, जैसे आईने से कह रही हो "How Dare You to look me Like This, Now This beauty is only For Raghav."

जो लोग सिमरन को जानते थे उनके लिए यह आश्चर्य की बात थी, क्योंकि पिछली पूरी जिंदगी में सिमरन ने किताबों के सिवा किसी और से बात भी नहीं की थी।

उसने स्कार्फ अपने गले पर रखा, अपना पर्स उठाया और नैना को शाम को आने की हिदायत देते हुए तेजी से सीढ़ियों की तरफ लपकी। हर काम में एक अलग ही तेजी थी उसके। ऐसा लग रहा था जैसे Temple Run 🏃में दौड़ते वक्त अचानक से बूस्ट मिल गया हो।

खैर! घर से निकल कर वह सीधा फूल वाले के पास पहुंची। 8-10 गुलाब के फूलों का एक बंडल खरीदा, चमकीले कागजों में लपेटा और उसे अपने बैग के सुपुर्द करते हुए तेजी से राघव के घर की ओर बढ़ी।

प्रेम और गुलाब, ऐसा लगता है ये दोनों वस्तुएं ईश्वर ने एक दिन एक ही साथ बनाई थीं। क्योंकि ना तो कभी प्रेम गुलाब से अलग हो पाया और ना ही गुलाब प्रेम से। दोनों एक दूसरे के पूरक ना होकर भी एक दूसरे के लिए अपने दिल में अद्भुत सम्मान संजोए हुए हैं और सम्मान भी इतना कि यदि कोई अधपका प्रेमी भी जमीन पर पड़े गुलाब को देख ले तो उसे उठाकर संजोने की हर जुगत में लग जाता है। यदि आप नाइनटीज़ में बड़े हुए हैं तो गुलाब को किताब में रखने की कई कहानियों से 2-4 हुए होंगे, व्याख्यान की क्या ही जरूरत है।

इधर सिमरन भी राघव के दरवाजे पर पहुंच चुकी थी और खड़ी होकर इधर-उधर देख कर गली का माहौल ले रही थी। खुद को ऐसा जताने की कोशिश कर रही थी, जैसे पहली बार आई हो। तीन बार उसने डोरवेल बजाने के लिए हाथ उठाए और तीनों बार अपने हाथों को यथावत सहेज लिया। तभी फोन की घंटी बजी, सिमरन ने फोन उठाया, दूसरी तरफ राघव था। पूछा "इतनी देर कहां लग गयी तुमको 2 मिनट का तो रास्ता है।" सिमरन ने कांपती आवाज में कहा "कब से तो बाहर खड़ी हूं, दरवाजा खोलोगे तब तो अन्दर आउंगी।"

राघव ने शायद दौड़कर दरवाजा खोला और एक किनारे की तरफ हट गया। सिमरन तेजी से अंदर की ओर भागी जैसे किसी से पीछा छुड़वाना चाहती हो। प्रेम की राह पर पांव रखते ही प्रेमी को अनायास ही अपने ऊपर हजारों नजरों का आभास होने लगता है। वे वास्तविकता में होती है या नहीं, इसका कोई मोल नहीं है।

राघव दरवाजा बंद कर के अंदर पहुंचा, देखा तो अंदर का नजारा ही बदला हुआ था। वही सिमरन जो आते ही अपना बैग मेज पर फेंक कर बिस्तर पर फैल कर लेट जाया करती थी, आज कोने में खड़ी होकर अपना स्कार्फ खा रही थी। राघव को हंसी आ गयी, पूछा "भूख लगी हो तो कुछ ले आऊं, कपड़े क्यों खा रही हो?" सिमरन ने शर्माते हुए स्कार्फ का कोना छोड़ दिया, लेकिन कुछ बोली नहीं।

राघव अपनी कुर्सी से उठा और सिमरन के पास गया। कंधे पर हाथ रख कर पूछा, "क्या हुआ कोई बात है क्या? इतनी घबराई हुई क्यों हो?" सिमरन के पास इन सवालों का कोई जवाब न था। राघव ने उसे कुर्सी पर बिठाया और खुद बिस्तर पर बैठ गया। फिर उसने एक-एक करके सारी बातें सिमरन के सामने रखीं। आज की, कल की, भविष्य की भी, जिसके बारे में दोनों को पता नहीं था। सिमरन बस 'हां' 'ना' में जवाब देती रही। राघव ने यह भी बताया कि कैसे वह अपने दोस्त यानी सिमरन के भैया से अपनी शादी की बात करेगा और कैसे वह सिमरन के मा-पिता जी को मनाएगा।

बात करते-करते काफी देर हो गई। सिमरन बस सुन रही थी, उसने अभी तक एक शब्द भी नहीं बोला था। 'हां' 'ना' के लिए भी वह अपने सिर को आगे-पीछे या दाएं-बाएं हिलाना ही बेहतर समझ रही थी। राघव, जो कि ऐसी सिमरन से पहली बार मिल रहा था, के लिए यह सब बहुत ही कॉम्प्लिकेटेड होता जा रहा था। वह बिस्तर से खड़ा हुआ। सिमरन को कुर्सी से उठाया और अपने नजदीक लाकर पूछा, "सच में प्यार करती हो मुझसे या बस मेरे कहने भर से हाँ कर दी।" सिमरन को इस सवाल का जवाब अपने सिर हिलाने में नहीं सूझा, अतः वह चुप रही। राघव ने फिर से पूछा और इस बार उसकी आवाज में कातरता स्पष्ट थी। जवाब इस बार भी नहीं मिला, लेकिन राघव समझ चुका था कि प्रेम में सदैव मौन स्वीकारोक्ति ही मिलती है।

राघव ने अपने से दूर करते हुए सिमरन को बिस्तर पर बिठाया और उसकी कांपती हुई उंगलियों को सहलाते हुए बोला "इतना क्यों डर रही हो भाई! अब शर्माना बंद भी करो। अब तो मैं तुम्हारा हो गया हूं, तुम्हारा हक हो गया है मुझ पर। ऐसे ही नीचे देखती और शर्माती रहोगी तो मुझे कोई और ले कर चला जाएगा।"

सिमरन ने पिछले 2 घंटे में पहली बार नजर उठाई और डबडबाई आंखों से राघव की ओर रूठने के अन्दाज में देखा। राघव से न रहा गया, उसने सिमरन के हाथ को पकड़कर खींचा और अपने आगोश में लेते हुए अपनी ठुड्डी को उसके सिर में धंसा दिया। आंसू, जो कि अभी तक सिमरन की आंखों में रुका हुआ था, इस झटके से आंखों से निकलकर राघव की शर्ट को भिगोता हुआ उसके हृदय तक पहुंच गया और फिर एक खामोशी ने उन दोनों के साथ पूरे कमरे को अपने आगोश में ले लिया।

वही खामोशी जो कल दो पथिकों की नई आवाज बनने वाली थी।

विराम।
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3 comments:

Unknown said...

अद्भुत भईया बेहद मार्मिक मिलन ।

Rahul mishra said...

पढ़कर अच्छा लगा

Rishi Dwivedi said...

धन्यवाद मित्र