ऋते!
मैं तुम्हारे साथ प्राक् युग में जीना चाहता हूँ, जहाँ प्रेम की अभिव्यक्ति हेतु लेखन एक माध्यम के रूप में विकसित नहीं हुआ था। स्त्रियां, अपने संगी पुरुषों के साथ खेत व जंगल, उपजाने व शिकार करने जाया करती थीं। तब तुम्हें अपने प्रेम की अधिकारिणी बनाने हेतु इतना परिश्रम न करना होता। पत्रों के लंबे संवाद से तुम्हें पीड़ा न पहुंचाता, बल्कि तुम्हें अमलतास के तले बने लताओं के एक झुरमुट में ले जाता और पत्थरों को रगड़ कर बनाई ब्लेड से अंगूठे में एक निशान लगा तुम्हारी मांग सिंदूरी कर देता। मैं तुम्हें चुनता और तुम मुझे; भौतिकवाद की तृष्णा से परे सभी सुख-दुख में जीवन संगी बनने के वचन के साथ।
जानती हो! अफ्रीका की एक जनजाति है, उसमें जब दो युगल साथ आते हैं तो एक संगीत बनाते हैं; उनका अपना संगीत, उनके अपने प्रेम की अभिव्यक्ति हेतु। वे उस गीत को प्रत्येक संस्कार में गाते हैं और स्वयं के होने की पुष्टि करते हैं। उनका जीवन उस गीत के माध्यम से अभिव्यक्ति पाता है और उनका संबंध गीत को नींव मान आकार लेता है। मैं चाहता हूं कि हम भी एक संगीत रचें; एक अभिव्यक्ति बनाएं; एक नींव पूजन करें। तुम्हारी दैहिक अग्नि में अपना सर्वस्व जला लेने से पहले मैं तुम्हारे मन का एकराट बनना चाहता हूं।
मैं चाहता हूं कि आषाढ़ मास की मध्यरात्रि में मेघों के आतंक से जब दशों दिशाएं चीत्कार उठें, तब तुम मेरा सुरक्षा कवच बनने हेतु मुझमें ऐसे सिमटो जैसे मां पार्वती महान शिव में सिमट कर उन्हें अर्धनारीश्वर बना देती हैं।