चुनाव हो गए हैं खत्म
आ गए हैं एग्जिट पोल भी
और छेड़ दिया है
तू-तू मैं-मैं के एक अनोखे तार को,
यहां जीतता नहीं कोई
बस हराने में लगे हैं
अपने विरोधियों को
और उनके सहयोगियों को,
अपने धारदार विचारों से
काट रहे हैं उनके विचार
और दे रहे हैं अपने झूठ को
सत्य का आकार,
यह अनोखा नहीं है
हर बार यही होता है
जंग चलती है विचारों की
और फिर एक हार जाता है
लेकिन मरता नहीं,
फिर फैलाता है दुष्प्रचार
कि हराया गया हूं साजिश से
देता है गालियां भी
कभी ईवीएम को
कभी चुनाव आयोग को
कभी जीतने वाली पार्टी को
कभी खुद को भी
और हम जैसे आत्ममुग्ध बौने
मजा लेते हैं हवा का
मिजाज का
करते हैं गहन चर्चाएं चुनाव पर
मित्रों के साथ
दस फीट के कमरे में बैठकर,
और ऐसे ही हर बार
कुछ खट्टी, कुछ मीठी
कुछ जायकेदार बातों के साथ
हम मनाते हैं
लोकतंत्र का यह महापर्व
लोकतंत्र का महात्यौहार।
- ऋषि
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