Monday, 17 June 2019

छत वाला प्यार

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तुमसे रोज मिलता हूं। छत के उसी कोने में, जहां से तुम दिखती थी मुझे। जब भी छत पर आता हूं, अनायास ही नजरें वहीं पहुंच जाती हैं। घण्टों खड़ा निहारता रहता हूं। कभी-कभी तुम प्रकट भी हो जाती हो-देवी सी, तब खुद को चिकोटी काट कर वास्तविकता में फौरन वापस लौटता हूं, क्योंकि तुम्हारी सुन्दरता स्वप्नलोक में चौगुनी हो जाती है जो मेरी आंखे सम्भाल नहीं पातीं।