प्रिय मृणालिनी,
तुम्हारे बारे में बहुत सुना था मैंने, मेरी छोटी दीदी अक्सर तुम्हारी तारीफें किया करती थीं। साथ ही यह भी बताया करती थीं कि तुम मुझे पसंद करती हो और तुम मुझे ‘लड्डू’ कहकर संदर्भित करती हो। इतना कुछ सुनने और जानने के बाद मेरे अंदर एक प्रेम मिश्रित भावना तुम्हारे लिए उपजने लगी थी। मेरी ख्वाहिश होने लगी थी कि तुमसे मिलूं, तुमको जानूं और अपने बारे में भी बताऊं, जिससे हम एक सुंदर संबंध निर्मित कर पाएं।
मुझे आज भी वह दिन याद है जब तुम पहली बार मुझसे मिलने आई थी। सर्दियां हल्की-हल्की शुरू हो गई थीं। मेरे जन्मदिन के एक दिन बाद 22 अक्टूबर को तुम पेपर में लिपटा हुआ एक गिफ्ट लेकर आई थी। नारंगी साड़ी में लिपटी हुई एक सुंदर मूर्ति लग रही थी तुम, जिसे एक महान कलाकार द्वारा व्यवस्थित समय लेकर तराशा गया हो और उस पर तुम्हारा खुद को सजाना सोने पर सुहागा जैसा था।