Thursday, 31 December 2020

अलविदा 2020

 



प्रिय 2020,

                                     आज तुम बीत रहे हो। हम आज विलगन के उस मोड़ पर खड़े हैं, जिसके बाद हमें फिर कभी नहीं मिलना है; कम से कम मेरे इस जीवन-चक्र में तो कभी भी नहीं। मैं विस्मय में भरा हुआ तुम्हारे जाने को देख रहा हूं। मैं तुम्हारे जाने को देखकर दुखी नहीं हो पा रहा; आंखें आसुओं से भरी नहीं हैं, जबकि उन्हें होना चाहिए। कारण से हम दोनों भली-भांति परिचित हैं, फिर भी विदाई में अश्रुपूरित नयनों का होना हमारी संस्कृति में शुभ माना जाता है। विलगन की वेदना में निकले अश्रु केवल वेदना प्रकट करने के लिए नहीं होते बल्कि सांस्कृतिक शुभता का एक पुट भी इसमें छिपा होता है, जो आने वाले कष्टों और पीड़ाओं से हमें सुरक्षित करता है। ऐसे में इस बात को लेकर भी मैं चिंतित हूं कि कहीं तुम्हारे जाने को देखकर मेरा शुभ ना करना तुम्हारे बाद आने वाले के लिए कष्टकर ना बन जाए। तुम्हारे साथ एक लंबा समय बिताने के बाद जब आज तुम विदा हो रहे हो, तो मैं छत की मुंडेर पर खड़ा तुम्हें जीते हुए मिली पीड़ाओं के जोड़-घटाव में व्यस्त हूं।