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पगडंडियाँ खत्म हो गई हैं गांव में
उनकी जगह ले ली है
तारकोल में सनी गिट्टियों ने
कुछ ईंटों ने भी,
रास्ता हो गया है सुगम
बाजार से गांव तक,
अब तो
गाड़ी मोटर भी दौड़ते हैं उन पर
तेज बहुत तेज,
विकसित हो रहे हैं गांव
हो रहे हैं नई तकनीकों से लैस
औ बदल रहे हैं खुद को,
इन्टरनेट भी आ गया है
सो देखते हैं यु-ट्युब विडियोज़
औ चला रहे हैं टिक-टॉक भी
ढल रहे हैं आधुनिकता में,
इसी बीच बहुत कुछ बदल रहा है
बदलाव में,
औ पुराना खत्म हो रहा है सब
जैसे-
दुआरे का वातानुकूलित छप्पर
पीपल के नीचे के ताश के पत्ते
बाबा के खलिहान की कुश्ती
नीम के पेड़ के झूले
औ हमारी लच्ची-डांड़ी भी
गुल्ली-डंडे की तो क्या ही कहें,
औ रिश्ते भी हो रहे हैं गायब
बड़के बप्पा औ अम्मा के
ताऊ और ताई के
सब सिमटते जा रहे हैं
कुछ अपनों में
कुछ स्वयं में
और लगे हैं करने को आत्मसात
ये आधुनिकता,
हो जाना चाहते हैं विश्वचेतस
अपने फेसबुक औ ट्विटर पर,
औ चाहते हैं बनाना
एक ग्लोबल विलेज।
- ऋषि
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