जो लिखना चाहता है
वर्तमान परिस्थितियों पर कविता
तीक्ष्ण व्यंग
कुछ कटाक्ष भी
और संग्रहीत कर देना चाहता है
अपने संकलन में,
जिससे
आने वाली पीढ़ियां
यह ना कह पाएं
कि तुम मौन क्यों थे
क्यों नहीं लिखा तुमने सच
जो तुम्हारी आंखों के सामने हो रहा था
कहां छुपे हुए थे तुम
प्रेमिका के पल्लू या जुल्फों में तो नहीं।
लेकिन तभी
उसे याद आती हैं कुछ तलवारें
एक आध बंदूकें
और एक बड़ी भारी भीड़,
जो उसके सच बोलने पर
या लिखने पर
उसे कुचलने को आमादा हो जाती है
और तब तक मारती है
जब तक उसकी कलम ही नहीं
उसकी सांसे भी मौन न हो जाएं,
देती हैं उसकी कविताओं को
धर्म का रंग
बता देती है उसे असहिष्णु
कहती है कि फैलाता है सांप्रदायिकता
नहीं है यह जीने लायक
मार डालना चाहिए इसे,
वही कवि जिसने लिखना चाहा है सच
उस भीड़ के लिए नहीं
अपने आने वाली पीढ़ियों को इतिहास समझाने के लिए
जिससे वे भटकें ना
और बन सके स्वयं व समाज के लिए
एक वरदान
आत्मघाती नहीं,
लेकिन तभी आज याद आती है उसे
उसकी एक प्यारी सी पत्नी
जो उसके नाम का सिंदूर भरती है मांग में
और हर रोज तब तक प्रतीक्षा करती है उसकी
जब तक वो घर नहीं आ जाता,
याद आते हैं उसके दो मासूम बच्चे
वे दो छोटी पौधें
जिसे रोपा है उसने
अपने आने वाले कल
और देश के भविष्य के लिए
याद आ जाते हैं उनके दुधमुहे चेहरे
उनके खिलौनों की चाहत
दूध और टॉफी-बिस्कुट के पैसे
शिक्षा का खर्च
और इस पूंजीवादी युग की मार भी,
और याद आते हैं
उसे बुड्ढे मां-बाप भी
जिन्होंने दवाइयां लेने भेजा है उसे
जो आशा से देखते हैं उसमें
कि यही है वह
जो उनके उस पार के जीवन में प्रवेश तक
ख्याल रखेगा उनका,
और फिर याद आ जाती है वही भीड़
हां वही आतंकी भीड़
पत्थर, तलवार और बंदूकों से लैस
जो यह सब कुचल देगी
और बढ़ जाएगी आगे
किसी और के सपनों को कुचलने
किसी और का घर बर्बाद करने,
सब सोचकर
रात के घनघोर अंधेरे में बैठकर
वही कवि लिखता है प्रेम पर एक कविता
प्रेमिका की जुल्फें, उसके नैन-नक्श
और भी बहुत कुछ
उसमें बताता है संपूर्ण विश्व को अपना घर
और कहता है हर व्यक्ति को
अपना भाई, मित्र, सखा,
जिसे कल मंच पर सुना कर
कुछ पैसे कमाना है उसको
अपने पत्नी, बच्चों और माता-पिता के लिए,
इस तरह घोंटता है वह सच का गला
और इतिहास का भी
अपनी जरूरतों में फंस,
और घोंटे भी क्यों ना
उसे कब आजादी है कुछ बोलने की
कुछ ऐसा कहने की जो वास्तविक हो
क्योंकि वह तो रहता है
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में
जहां उसे लिपिबद्ध संविधान ने दी है
विचारों के अभिव्यक्ति की
पूर्ण स्वतंत्रता
और संरक्षण भी।
***
-ऋषि
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*Image Source : Internet
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