दिख रही है हजारों कविताएं
सारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर
प्रेम को ही स्वतंत्रता मान चुकी
एक लड़की के क़सीदे में,
वे कविताएं
शायद भूल जाती हैं
मुथैया विनीथा को
रितु करिधाल को
हिमा दास को
कल्पना चावला को
बछेंद्री पाल जैसी शख्सियत को
गार्गी, अपाला, घोषामुद्रा की
बात ही क्या करूं,
समझ नहीं पा रहा मैं
कि क्यों नहीं भागती
कोई लड़की घर से वैज्ञानिक बनने
'हंसी तो फंसी' की 'मीता' की तरह
या हिमालय पर चढ़ जाने को
या दौड़ जाने को हिमादास से आगे
या फिर कर लेने को मुठ्ठी में
आसमान सारा,
या फिर स्वतंत्रता
बस प्रेम तक सीमित है
और के लिए उठते ही नहीं कदम,
विषाद में हूं
चाहता हूं कोई भागे
ऐसे भी किसी कार्य के लिए
और लिखी जाएं उस पर भी
कविताएं, बड़े लेख
खण्ड-काव्य, महाकाव्य
सरीखे,
हो सकें गौरवान्वित
कविताएं भी
ऐसे भगते कदमों की पीड़ा से।
***
- ऋषि
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