Thursday, 31 December 2020

अलविदा 2020

 



प्रिय 2020,

                                     आज तुम बीत रहे हो। हम आज विलगन के उस मोड़ पर खड़े हैं, जिसके बाद हमें फिर कभी नहीं मिलना है; कम से कम मेरे इस जीवन-चक्र में तो कभी भी नहीं। मैं विस्मय में भरा हुआ तुम्हारे जाने को देख रहा हूं। मैं तुम्हारे जाने को देखकर दुखी नहीं हो पा रहा; आंखें आसुओं से भरी नहीं हैं, जबकि उन्हें होना चाहिए। कारण से हम दोनों भली-भांति परिचित हैं, फिर भी विदाई में अश्रुपूरित नयनों का होना हमारी संस्कृति में शुभ माना जाता है। विलगन की वेदना में निकले अश्रु केवल वेदना प्रकट करने के लिए नहीं होते बल्कि सांस्कृतिक शुभता का एक पुट भी इसमें छिपा होता है, जो आने वाले कष्टों और पीड़ाओं से हमें सुरक्षित करता है। ऐसे में इस बात को लेकर भी मैं चिंतित हूं कि कहीं तुम्हारे जाने को देखकर मेरा शुभ ना करना तुम्हारे बाद आने वाले के लिए कष्टकर ना बन जाए। तुम्हारे साथ एक लंबा समय बिताने के बाद जब आज तुम विदा हो रहे हो, तो मैं छत की मुंडेर पर खड़ा तुम्हें जीते हुए मिली पीड़ाओं के जोड़-घटाव में व्यस्त हूं।

Tuesday, 8 December 2020

तुम्हारा होना और ना होना।

 


जब तुम साथ होती है तो मेरे शब्द मुखरित नहीं हो पाते,
वे आवाज में बदलने से पहले डूब जाते हैं तुम्हारी आंखों में
या कहीं और,
मेरे फड़फड़ाते होंठ दब जाते हैं तुम्हारे मधुर चुम्बनों के भार से,
और हृदय की धड़कनें दबा दी जाती हैं तुम्हारे कोमल वक्षस्थलों द्वारा।

Monday, 16 November 2020

डूबता सूरज : एक सुंदर अनुभूति


मुझे सूर्य से संबंधित सुंदरताओं में उनका सांय-काल डूबना सर्वाधिक प्रिय है। कभी-कभी तो इस दृश्य की मनोहरता में मैं इतना मग्न हो जाता हूं कि आस-पास की प्रकृति का भान ही नहीं रहता। लालवर्णी गोले का धीरे-धीरे उतरकर पेड़ों के झुरमुट में ढलते देखना एक अद्भुत लास्यात्मक अनुभूति प्रदान करता है।

अधिकांशतः लोग सूर्य के उगने को और दिन की प्रथम वेला को आनंद या यूं कहें कि सौभाग्य से जोड़ते हैं। लेकिन मैं थोड़ा अलग सोचता हूं मुझे लगता है कि किसी भी कार्य या प्रक्रिया का ‘अंत’ या ‘पूरा होना’ ही निष्कर्ष के लिए सबसे महत्वपूर्ण बिंदु होता है।

जब आप दूर ढल रहे सूरज को देखते हैं तो अनायास ही आपको आभास होता है कि दिन समाप्त हो रहा है। यानी कुछ जो शुरू हुआ था, वह पूरा होने को है। यदि आप इस पल को देखते हुए वैचारिक विश्लेषण के लिए स्वतंत्र भी हैं तो साथ में यह बात भी स्थापित हो रही होती है कि जो कुछ पूरा हो रहा है, वह सुखद है या कम से कम कष्टकर तो नहीं है। क्योंकि यदि वह क्षण कष्टकर होता तो आप वैचारिकी में नहीं, बल्कि उन उपजे कष्टों के बीच कहीं गुंथ चुके होते।

मैं मानता हूं कि “अंत” ही सदैव निष्कर्ष का केंद्र बिंदु होना चाहिए, न कि प्रारम्भ या कार्य प्रणाली; जैसे सूर्य और उसका डूबना।


2020

Saturday, 14 November 2020

हमारा शुभ दीपोत्सव

 


हम दीपावली का महान दीपोत्सव भारत के चक्रवर्ती सम्राट, इक्ष्वाकु वंश के महान अधिनायक, अयोध्या नगरी के सूर्य श्री रामचंद्र जी के, जंबूद्वीप के सर्वश्रेष्ठ विद्वान से अपनी पतनाविमुख इच्छाओं के कारण पथभ्रष्ट होकर राक्षस बने लंका के राजा रावण को मोक्ष प्रदान कर व लंका पर विजय प्राप्त कर, 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अपनी धर्मपत्नी मां सीता और अनुज श्री लक्ष्मण के साथ वापस अपने धाम अयोध्या आगमन के उपलक्ष्य में मनाते हैं।

संभव है कि आपकी मान्यताओं में दीपोत्सव मानने का करण भिन्न हो लेकिन फिर भी सांस्कृतिक विविधता के एकात्मक रूपांतरण की परिणति है कि हम इस दीपोत्सव को समान हर्षोल्लास से मनाते हैं।

यही भारतीयता है। यही हिंदू होना है। अंततः यही विश्वचेतस होना है। यह एक संस्कृति है, इसे एक धर्म का नाम देकर संकुचित ना करें।

मेरे प्रिय मित्र, जिन्हें अयोध्या और दीपावली में मेरे लिए एकजुटता नहीं समझ आ रही थी, संभव है उन्हें व्यवस्थित स्पष्टता मिल गई हो।

संपूर्ण विश्व को हमारे महान पूर्वज श्री रामचंद्र, मां सीता व श्री लक्ष्मण के अयोध्या वापस आने के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे, महान दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं!

श्री रामचन्द्र आपका सब का जीवन सदैव प्रकाशमय रखें।

                                 ~ ऋषि

चित्र : श्री रामचन्द्र जी के परम प्रिय सेवक महाबली हनुमान जी के आवास महान हनुमानगढ़ी के गर्भगृह की देहरी पर दीप प्रज्वलित करते मेरे अनुज भ्राता Devesh Dwivedi जी।


copyright©2020

Friday, 13 November 2020

अयोध्या में दीपावली

 


वे जिन्हें लगता था कि युगों पुरानी हमारी पहचान हमसे छीन लेंगे।

वे जो सोचते थे कि अयोध्या को रण-क्षेत्र बनाकर, हमारे राम का घर एक अखाड़ा बना देंगे।

वे नहीं जानते थे कि हमारे राम के घर जलने वाले दीपक एक दिन विश्व कीर्तिमान बनाएंगे।

वे जिन्हें हमारी आस्था के साथ खेलना अपना सबसे प्रिय कार्य लगता था, आज वे भी राममय हो जाना चाहते हैं।

वे सभी आज लॉस एंजिल्स, बर्लिन, एमस्टरडम, न्यू साउथ वेल्स और लंदन की गलियों से हमारे महान पूर्वज और चक्रवर्ती सम्राट भगवान राम के अजेय नगरी की तस्वीरें साझा कर रहे हैं।

वे आज अपने आसपास के लोगों से मेरे राम की महान नगरी अयोध्या का कीर्तिमान बता अपने रुतबे में थोड़ी बढ़त चाहते हैं। 

बहुत साल लगे उन्हें अयोध्या नगरी के नाम का अर्थ समझने में; अब वे जान गए हैं कि अयोध्या को नहीं जीता जा सकता, वह युगों से अजेय है और समय के अंत तक महानतम रहने वाली है। यही महान भारत की पहचान है।

हम जब भी यह समझने लगते हैं कि मेरे सत्य और आपके सत्य के बीच में भी एक सत्य है और उस सत्य का भी सम्मान करने लगते हैं, तब हम भारतीय होने लगते हैं। भारत किसी देश का रेखांकन मात्र नहीं है, बल्कि एक संस्कृति है, एक विचारधारा है। यह राम की भूमि है, जहां जीवन दर्शन आकर लेता है और विमर्श से पैदा हुई विविधता को एकता में पिरो जीवन जीने की एक संहिता तैयार करता है। हम इसे हिंदू होना कहते हैं।


~ ऋषि

Copyright©2020

Wednesday, 28 October 2020

मृणालिनी के नाम..

 


प्रिय मृणालिनी,

            तुम्हारे बारे में बहुत सुना था मैंने, मेरी छोटी दीदी अक्सर तुम्हारी तारीफें किया करती थीं। साथ ही यह भी बताया करती थीं कि तुम मुझे पसंद करती हो और तुम मुझे ‘लड्डू’ कहकर संदर्भित करती हो। इतना कुछ सुनने और जानने के बाद मेरे अंदर एक प्रेम मिश्रित भावना तुम्हारे लिए उपजने लगी थी। मेरी ख्वाहिश होने लगी थी कि तुमसे मिलूं, तुमको जानूं और अपने बारे में भी बताऊं, जिससे हम एक सुंदर संबंध निर्मित कर पाएं।

मुझे आज भी वह दिन याद है जब तुम पहली बार मुझसे मिलने आई थी। सर्दियां हल्की-हल्की शुरू हो गई थीं। मेरे जन्मदिन के एक दिन बाद 22 अक्टूबर को तुम पेपर में लिपटा हुआ एक गिफ्ट लेकर आई थी। नारंगी साड़ी में लिपटी हुई एक सुंदर मूर्ति लग रही थी तुम, जिसे एक महान कलाकार द्वारा व्यवस्थित समय लेकर तराशा गया हो और उस पर तुम्हारा खुद को सजाना सोने पर सुहागा जैसा था।

Sunday, 21 June 2020

पत्थरों पर लिखा प्रेम जिसके लिए..



पत्थरों  पर  लिखा  प्रेम  जिसके  लिए,
उसकी  दुनिया  हमारी  कभी  ना  हुई।

हम  मिले  प्रेम में कुछ  कदम  भी चले,
कुछ  कहानी  लिखी  कुछ  इशारे बने।
पंखुरी  से  अधर-द्वय  तनिक  चूमकर,
एक   दूजे  के   हम-तुम   सहारे   बने।

Friday, 19 June 2020

नयन में भरे नीर कैसे कहेंगे।



नयन   में    भरे   नीर    कैसे   कहेंगे,
कि तुमको  भुलाना  कठिन है  मेरी जां!

वे नजरों कि भाषा में कहते हैं सबकुछ,
मुखर शब्दों  की  उनको आदत नहीं है।

तुम्हें    देखना    चाहते   हैं   निरन्तर,
अधिक  की  उन्हें कोई  चाहता नहीं है।

Friday, 22 May 2020

आयरन मैन का महापरिनिर्वाण और कॉरोना वायरस।



अभी कल कि ही तो बात है जब आयरन मैन थैनॉस से पृथ्वी को बचाते हुए शहीद हो गया। उसके बाद एक साथ कई ऐसी घटनाएं हुई जो संभव ही नहीं थी। कैप्टन अमेरिका जो कभी बुरा ही नहीं हो सकता था अचानक से बूढ़ा हो गया हो गया और थॉर को एस्गार्ड के समाप्ति ने डिप्रेशन और एंजाइटी से घेर लिया।

आयरन मैन का महापरिनिर्वाण कोई इतनी छोटी खबर नहीं जो ब्रह्मांड से छुपाई जा सके, ऐसे में कॉरोना का कहर एक चिंता का विषय बन जाता है कि कहीं यह किसी अन्य ग्रह के लोगों द्वारा फैलाया गया मायाजाल तो नहीं? लोकी पहले ही मर चुका है, अतः उस पर शक करना ठीक नहीं।

कहीं ऐसा तो नहीं कि मणियों को ला कर वापस रखते समय कोई श्रृंखला टूट गई हो और जीवन तरंगों में परिवर्तन हो गया हो, जिसका प्रभाव दुनिया को झेलना पड़ रहा हो।

आज हमें फिर से सभी अवेंजर्स की जरूरत है लेकिन बिना आयरन मैन के उस संस्था का कोई अस्तित्व नहीं। हमें अंदाजा भी नहीं था कि आयरन मैन के महापरिनिर्वाण के तुरंत बाद ही पृथ्वी को इतनी कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ेगा।

अब हमारे उम्मीद की किरण केवल वह मकड़-मानव पीटर है, जिस पर टोनी स्टार्क ने उम्मीद जताई थी। उम्मीद है वह अपना दायित्व बखूबी निभाएगा और दुनिया को आयरन मैन की तरह सुरक्षित रखेगा। बचे हुए अवेंजर्स से उम्मीद की जाती है कि वे इस वैश्विक महामारी के समय मकड़-मानव की पूरी सहायता करेंगे और साथ मिलकर इस दुनिया को पुनः सुरक्षित करेंगे।

#We_Miss_You_Iron_Man


कॉपीराइट©२०२०

Wednesday, 20 May 2020

एक अधूरी कहानी का अंत


अभी भी जब किसी कारणवश छत पर आता हूं तो अनायास ही नजरें तुम्हारे छत और छज्जे की ओर चली जाती हैं। प्रेम से उपजी स्मृतियां अपना रास्ता कभी नहीं भूलतीं। बहुत रोकने के बाद भी आंखों का भाग कर तुम्हारे हिस्से की ओर चले जाना कभी-कभी शर्मिंदगी का सबब भी बन जाता है।

जिस तरह कोई फल खाते हुए पहले मीठा, फिर कसैला और अंत में स्वाद-हीन हो सूख जाता है, उसी प्रकार विलगन की वेदना भी पहले अत्यंत पीड़ादायक, फिर कसैली और अंत में स्वाद-हीन हो सूख जाती है। प्रतीत हो रहा है जैसे हमारे विलगन की वेदना भी स्वाद-हीन हो सूखने की तरफ अग्रसर है। अब तुम्हारे छज्जे पर कोई अपनत्व नहीं दिखता। ऐसा लगता है जैसे सूरज की तीक्ष्ण किरणों ने तुम्हारे छज्जे पर रखे, मेरे इश्क की स्मृति से पैदा हुए अपनत्व को वाष्पित कर कहीं और, किसी अन्य की भूमि पर बरसा दिया है।

Sunday, 3 May 2020

मलिक मोहम्मद जायसी कृत महाकाव्य पद्मावत और मैं


मलिक मोहम्मद जायसी कृत महाकाव्य पद्मावत पढ़ने के बाद मेरे लिए उसके मुख्य दो ही संदेश उभर कर आते हैं-

पहला यह कि प्रेम आपको दिव्य बना देता है।

और क्योंकि मैं पुरुष हूं अतः दूसरा मुख्य मैसेज यह कि अगर कोई पद्मिनी मेरी कल्पना में है तो मैं उसे केवल रत्नशेन बनकर ही प्राप्त कर सकता हूं अलाउद्दीन बनकर नहीं।

तीसरा संदेश जो मुख्यतः मेरा अपना निष्कर्ष है कि कामना बुरी नहीं है, आनंद बुरा नहीं है। अनियंत्रित, अनैतिक तृष्णा बुरी है।

Tuesday, 28 April 2020

बारिश और बर्फबारी..


#लॉकडाउन_डायरीज 📖

शाम के समय हल्की बारिश के साथ मंद पवन हौले से स्पर्श करके भागी और मैं भी उसके साथ साथ अपनी बालकनी में सुहावने होते मौसम का मजा लेने निकल आया। देखते ही देखते बारिश भी तेज हुई और उस छोटी पवन ने आंधी का रूप ले लिया। मैं अपने भावनात्मक संसार में उतरने ही वाला था कि मुझे अपना गांव याद आया। वे किसान याद आए जिन की फसलें खड़ी हैं या कट चुकी हैं। खेतों में पड़ी, वे व्यवस्थित मंच का इंतजार कर रही होंगी, जिससे उस किसान का पेट भरना था, जिसने अपना जीवन लगा कर उन्हें पैदा किया था।

Thursday, 23 April 2020

हम लड़ेंगे या हमें लड़ना ही होगा।



#लॉकडाउन_डायरीज 📖

आप सब आजकल की परिस्थितियों से भलीभांति अवगत हैं। आप सबको पता है कि हम इस समय एक विषम परिस्थिति से गुजर रहे हैं। सरकार द्वारा दिशा निर्देश जारी किए गए हैं और हम अपने स्तर पर भी समाज के बचाव के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। इस कठिन समय में कभी-कभी नकारात्मकता अपने पूरे आवेश में आकर हमें घेर लेती है और उस समय लगने लगता है कि क्या अब विश्व समाप्त हो जाएगा? क्या अब हम पहले जैसे स्वतंत्रता-पूर्वक नहीं घूम पाएंगे? क्या स्थितियां अब सदैव के लिए जटिल ही रहेंगी? मनुष्य का मन चंचल होता है। वह किसी एक बिंदु पर ज्यादा देर स्थिर नहीं रहता, अतः ऐसे विचार और मनोदशाओं का बनना स्वाभाविक है।

Tuesday, 21 April 2020

एक सिपाही ऐसा भी।


जुग जुग जियो लल्ला! तुम ही वास्तविक भारत हो। हम तो जाने कब आधुनिक बनने के चक्कर में विदेशी हो गए। कथरी औ खटिया का सुख हमारे हिस्से से सरक गया। लेकिन तुमको देख भरोसा हुआ कि भारत कहीं मजबूत है और हर लड़ाई में खुद को समेटे कंधे से कंधा मिला कर खड़ा है। पता नहीं तुम जानते भी हो या नहीं कि यह मास्क लगाने से क्या होता है? लेकिन तुम्हारा इसको लगाए रहना, तुम्हें इस लड़ाई का एक संजीदा सिपाही बना देता  है।

तुम कौन हो, कहां से हो? मैं नहीं जानता हूं, लेकिन अपने से लगते हो। लोग कहते हैं दुनिया बहुत छोटी है, अगर यह सत्य है तो किसी मोड़ पर जरूर मिलेंगे और पूछेंगे तुमसे कि कैसे अपनी कठिन परिस्थितियों से लड़ते हुए जाहिल ना बने तुम? कैसे तुमने खुद को मनुष्य बनाए रखा? कैसे समझ पाए कि क्या सही है और क्या गलत? कैसे तुमने बड़े किताबी ज्ञानियों से खुद को बड़ा बना लिया? अपने हिस्से की दुनियावी विपदाओं से लड़ते हुए, कब तुम बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों के शिक्षकों से भी महान बन गए?

इस तस्वीर ने बहुत कुछ कह दिया है लल्ला! इतना कि भावनाएं अपने उफान पर हैं। आंखों की नमी तुम्हें अपने अंदर महसूस कर रही है। तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लगा! इतना सामर्थ्य मिला कि इस छोटे संघर्ष क्या, हजार गुना बड़े संघर्षों से भी हम लड़कर जीत जाएं। तुम इस महामारी की लड़ाई के सबसे आगे के सिपाही हो, अन्जाने! मेरे हिस्से के भारत को तुम पर गर्व है।

तुम भारत हो और केवल तुम ही भारत हो।


Copyright©2020

Saturday, 11 April 2020

तुम्हारा पत्र आया है।



यादों को भुलाने के प्रयास में अभी बहुत दिन नहीं बीता, रोज घर से बाहर खलिहान में लगे सरकारी नल पर बैठकर तुम्हारे आने-जाने के रास्ते को तकता रहता हूं। हां यह अलग बात है कि जब इसी रास्ते से तुम्हारी डोली जा रही थी तो मैं मम्मी के कमरे की खिड़की से झांक रहा था, पता नहीं क्युं हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि दहलीज लांघ कर तुम्हारी जुदाई का आलिंगन कर पाऊं।

Saturday, 28 March 2020

कोरोना से डर रहे हैं।



चल रहे हैं लोग पैदल
काटने जीवन कठिन रण,
चाहते हैं घर पहुंचना
बीवी, बच्चों सबसे मिलना,
खाना-पीना खत्म है सब
है नहीं कोई सहारा,
लाख सब ढ़ाढस बंधाएं
कितना भी जीवन पिलाएं,
खुद ही खुद में मर रहे हैं
कोरोना से डर रहे हैं।

Thursday, 5 March 2020

संबंधों के साथ एकाकार होती रात्रि

Image Source : istockphoto.com

सुना था मिलन सुखद होता है, पर कितना सुखद? इसका अंदाजा नहीं था, और हो भी कैसे? इस शब्द की व्याख्या स्वयं में संपूर्ण सागर की गहराई और अनंत अंतरिक्ष की परिधि समेटे हुए है। अतः आपके हिस्से में कितनी बूंदें गिरीं, यह गिरने के बाद ही पता चलता है उसके पहले सब शून्य होता है।

Wednesday, 19 February 2020

एकांगी संवाद पत्र : याद-ए-फैजाबाद

Image Source : Internet

तुमसे दूर होना भी नियति का एक हिस्सा था। सालों बाद जब जीवन का जोड़-घटाव कर रहा हूं, तो पता चल रहा है कि तुमसे जो सीखा, उसका तुम्हारे बाद के जीवन में बड़ा योगदान रहा। तुम्हारे बाद के हर रिश्ते बड़े सलीके से रखे मैंने। कुछ को दिल की अलमारियों पर सजाया, कुछ को दिल के सोफों पर और कुछ उन ताखों पर, जहां तुम अपने झुमके रखा करती थी। ❤

Tuesday, 28 January 2020

खुदा ढूंढता हूं।



गमगीन  महफिलों में कहकहा ढूंढता हूँ,
खानाबदोश  बन  कर  जहाँ  ढूंढता  हूँ।

जहां   खत्म   कर   राब्ता  तुम  गए  थे,
वहां  छोड़  कर   हर  जगह   ढूंढता  हूं।

हो  पैबस्त  तुम  मेरी सांसों में फिर भी,
सूनी गलियों में तुमको बारहा ढूंढता हूं।

वो  एक  डोर  जिससे  हम-तुम बंधे थे,
उसी  डोर  का  दूजा  सिरा  ढूंढता  हूं।

तुम्हें  पा  सकूं  ये  मुमकिन   नहीं  पर,
तुम्ही  को  मैं  अब  हर  जगह ढूंढता हूं।

ये  बेचैनी है  या  जिद नहीं  जानता हूं,
तुम्हें   ढूंढता  हूं  कि  खुदा   ढूंढता  हूं।



copyright©2019