प्रिय 2020,
आज तुम बीत रहे हो। हम आज विलगन के उस मोड़ पर खड़े हैं, जिसके बाद हमें फिर कभी नहीं मिलना है; कम से कम मेरे इस जीवन-चक्र में तो कभी भी नहीं। मैं विस्मय में भरा हुआ तुम्हारे जाने को देख रहा हूं। मैं तुम्हारे जाने को देखकर दुखी नहीं हो पा रहा; आंखें आसुओं से भरी नहीं हैं, जबकि उन्हें होना चाहिए। कारण से हम दोनों भली-भांति परिचित हैं, फिर भी विदाई में अश्रुपूरित नयनों का होना हमारी संस्कृति में शुभ माना जाता है। विलगन की वेदना में निकले अश्रु केवल वेदना प्रकट करने के लिए नहीं होते बल्कि सांस्कृतिक शुभता का एक पुट भी इसमें छिपा होता है, जो आने वाले कष्टों और पीड़ाओं से हमें सुरक्षित करता है। ऐसे में इस बात को लेकर भी मैं चिंतित हूं कि कहीं तुम्हारे जाने को देखकर मेरा शुभ ना करना तुम्हारे बाद आने वाले के लिए कष्टकर ना बन जाए। तुम्हारे साथ एक लंबा समय बिताने के बाद जब आज तुम विदा हो रहे हो, तो मैं छत की मुंडेर पर खड़ा तुम्हें जीते हुए मिली पीड़ाओं के जोड़-घटाव में व्यस्त हूं।
मेरी मां बचपन में हमें एक कहानी सुनाया करती थीं, जिसमें एक मां अपने बिगड़े हुए बेटे के द्वारा हर दिन किए जा रहे गुनाहों को गिन कर अपने कमरे की दीवाल पर उतनी ही खूंटियां गाड़ दिया करती थी। कुछ समय बीत जाने के बाद जब वह लड़का सुधर गया और उसने अच्छे कार्य करने शुरू किए तो हर अच्छे कार्य पर उसकी मां दीवार से एक खूंटी उखाड़ दिया करती। ऐसा करते-करते एक दिन सारी खूंटियां उखड़ गई और जब एक भी खूंटी नहीं बची तो बेटे ने अपनी मां से कहा कि मैंने अपने पुराने किए गए सभी बुरे कर्मों का ऋण चुका दिया। मां ने अपने बेटे का हाथ पकड़ा और उस दीवार के पास ले गई और दिखाया कि बुरे कर्मों का ऋण तो चुक गया, लेकिन उसकी वजह से पैदा हुए दाग, गड्ढे या दरारें कभी नहीं भरेंगे। कुछ ऐसा ही हमारे और तुम्हारे द्वारा मिलकर जिए गए जीवन के साथ भी है। यदि आज की वस्तुस्थिति की बात करूं तो भविष्य को लेकर कोई सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती; ब्रिटेन में पैदा हुए नए स्ट्रेन, उसके संक्रमण की तीव्रता व अन्य देशों में उसके फैलाव को देखते हुए अनिश्चितताएं और भी बढ़ गई हैं, लेकिन यह जरूर है कि हमारी रागात्मक जिजीविषाएं एक दिन सब कुछ व्यवस्थित जरूर कर लेंगी; फिर भी तुम्हें जीने के दौरान मिले कष्टों और पीड़ाओं के दाग हमारे मन मस्तिष्क पर हमारे जीवन-चक्र के समाप्ति तक स्पष्ट उकरे रहेंगे। संभव है वर्तमान पर लिखी जाने वाली इतिहास की किताब द्वारा इन्हें हजारों वर्षों तक याद रखा जाए।
मैं एक सामान्य मनुष्य हूं और चेतना के उस स्तर तक नहीं पहुंचा हूं जहां पर पहुंचकर बुद्धिमान लोग सुख और दुख को जीवन का अंग मान लेते हैं और दोनों ही परिस्थितियों को एक समान भाव से जीते हैं। मैं आज भी दुख में रोता हूं और सुख में मोद मनाता हूं। ऐसे में मेरे विचारों के उद्वेग को तुम भली प्रकार समझ सकते हो। तुम्हें जीते हुए हमने उन्हें खोया, जो हमारे लिए महत्वपूर्ण थे। हमारे परिवार का हिस्सा नहीं थे, फिर भी रोशन चिराग थे। तुम्हें जीते हुए अपने अब तक के जीवन के सबसे कठिन संघर्ष से साक्षात्कार हुआ। एक समय पर तो सब कुछ समाप्ति की तरफ ऐसे बढ़ा कि जैसे तुम्हारा होना ही पाप का सूचक हो। भूख से बिलखते बच्चे; सैकड़ों किलोमीटर पैदल यात्रा करती गर्भवती माएं; बिना भोजन, वस्त्र और आर्थिक संसाधनों के सैकड़ों किलोमीटर यात्रा करते छोटे बच्चे और उनके परिवार जन; अपने पिता को साइकिल पर हजार किलोमीटर ढोकर घर पहुंची बालिका; क्या-क्या बताऊं तुम्हें जो तुम्हारे जाने के बाद भी तुम्हारे होने को कोसने पर मजबूर कर देगा। मैं जानता हूं कि इस सृष्टि में हम कलाकार मात्र हैं और महान निर्देशक द्वारा जिस पात्र के चित्रण का कार्यभार हम पर सौंपा जाता है वही हमारा अभीष्ट जीवन होता है। फिर भी माया में जकड़े एक मनुष्य के लिए उसकी वेदना, उसके आनन्द, उसकी जिजीविषात्मक कल्पनाएं और उसकी सफलताएं बहुत मायने रखती हैं।
मैं इस बात से भी अनभिज्ञ नहीं हूं कि तुमने केवल कष्टों से हमारा साक्षात्कार नहीं कर पाया बल्कि हमारी क्षमताओं और उपस्थित कमियों से भी हमारा परिचय करवाया है। तुमने हमें बताया की प्रकृति का क्रूर प्रहार व्यवस्थित वैज्ञानिक व तार्किक समाज को भी क्षण भर में छिन्न-भिन्न कर सकता है; यह भी बताया कि हमारा सामाजिक सुरक्षा का ढांचा कितना कमजोर और झीना है। तुमने हमें इससे भी अवगत कराया कि एक लोकतांत्रिक देश में जनता को अपनी सरकारें चुनते समय किन मुद्दों पर प्रमुखता से विचार करना चाहिए और यह भी की प्रकृति हमें जातियों, धर्मों, संप्रदायों, गुटों, या राजनीतिक दलों के सदस्य के रूप में नहीं देखती बल्कि उसके लिए पृथ्वी पर रेंगने वाले कीड़े और हममें कोई भी पक्षपात पूर्ण विभेदीकरण की परंपरा नहीं है। लेकिन एक सामान्य मनुष्य होने के नाते तुम्हें जीने के दौरान मिले कष्ट तुम्हारे द्वारा सिखाए गए इन पाठों के सामने अधिक मुखर हैं और ये बहुत आवश्यक बातें उन मिले कष्टों और उपजी पीड़ाओं के सामने गौड़ हो जाती हैं। यही वजह है कि तुम्हारे बीत रहे अंतिम दिन पर मेरा व्यवहार मुझे विस्मय से भर रहा है। समझ नहीं पा रहा हूं कि विलगन की वेदना में दुःखी हो जाऊं या तुम्हें जाता हुआ देखकर मोद मनाऊं।
आज तुम अनंत की यात्रा पर चले जाओगे। तुम्हारे साथ जिए गए जीवन की खट्टी-मीठी और प्रेरणादायक स्मृतियां हमारे हृदय की अंतःस्थली में सुरक्षित रहेंगी। तुम्हारे द्वारा दी गई नसीहतों को आत्मसात कर हम अपने कल को बेहतर बनाने का पूरा प्रयास करेंगे और तुमको जीते हुए उपजी वीभत्स परिस्थितियों को सहने की प्रक्रिया से पैदा हुए धैर्य का निवेश, हम अपने आने वाले जीवन के संघर्षों में करेंगे। कल एक नया सवेरा होगा और सच कहूं तो पूरा विश्व नहीं जानता कि वह सवेरा कैसा होगा, लेकिन इतना जरूर है कि हम खुद को संभाल लेंगे; हम फिर से खड़े होंगे और अपने अस्तित्व के लिए अपने समय के अंत तक लड़ते रहेंगे और अपने पात्र के चित्रण में आई हुई हर बाधा पर अपने सांघर्षिक सामर्थ्य से मंत्रपूरित तीक्ष्ण बाणों का संधान करते हुए आगे बढ़ेंगे।
“निश्चिंत रहना साथी! हम अपने कल को बेहतर बना ही लेंगे, लेकिन इन सबके बावजूद तुम मेरे जीवन-सत्र के सबसे यादगार क्षणों में से एक रहोगे और तुम्हारी पीड़ादायक प्रभाविता अंतःस्थली में सुरक्षित रहेगी। सुखद और मंगलमयी यात्रा की शुभकामनाएं!”
विदा साथी!
*****
copyright©2020
*Image credit - Internet
No comments:
Post a Comment