#लॉकडाउन_डायरीज 📖
आप सब आजकल की परिस्थितियों से भलीभांति अवगत हैं। आप सबको पता है कि हम इस समय एक विषम परिस्थिति से गुजर रहे हैं। सरकार द्वारा दिशा निर्देश जारी किए गए हैं और हम अपने स्तर पर भी समाज के बचाव के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। इस कठिन समय में कभी-कभी नकारात्मकता अपने पूरे आवेश में आकर हमें घेर लेती है और उस समय लगने लगता है कि क्या अब विश्व समाप्त हो जाएगा? क्या अब हम पहले जैसे स्वतंत्रता-पूर्वक नहीं घूम पाएंगे? क्या स्थितियां अब सदैव के लिए जटिल ही रहेंगी? मनुष्य का मन चंचल होता है। वह किसी एक बिंदु पर ज्यादा देर स्थिर नहीं रहता, अतः ऐसे विचार और मनोदशाओं का बनना स्वाभाविक है।
ऐसे विपरीत समय में हमें चिंतन-मनन करने की आवश्यकता होती है। यह सोचने की आवश्यकता होती है कि क्या पहले ऐसी विषम परिस्थितियों नहीं आई हैं? और यदि आई हैं तो हम उनसे कैसे उबरे हैं? हर मुसीबत का हल चिंतन और भूतकाल में आई समस्याओं के समाधान में किए गए प्रयासों में छिपा होता है।
यदि आप इतिहास के पन्ने पलटे तो आप पाएंगे कि हमारे पूर्वज इससे भी विषम परिस्थितियों में, इससे भी भयानक तूफानों से कश्तियों को निकालकर, सहेज कर धरा पर लाने में सफल हुए हैं। 1857 की महान क्रांति हो या भारत छोड़ो आंदोलन जैसा भारत-व्यापी आंदोलन, हमने नेतृत्व के अभाव में भी अपनी प्रभाविता स्थापित की है।
ऐसी विषम परिस्थितियों में जरूरत है गांधीजी को याद करने की, उनके संघर्ष और शिक्षाओं को दोहराने की। एक वस्त्र पहनने वाला एक सिपाही, जिसे ब्रितानियों ने अर्धनग्न फकीर कहा, ने अपनी जीवटता और सिद्धांतों के बल पर एक क्रूर और आतताई शासन से हमारे देश की जर्जर नाव को मुसीबतों से भरे महासागर से निकालकर व्यवस्थित किनारे पहुंचाया। याद कीजिए वह समय जब शासन और कानून हमारे विरोधियों का था। किसी को कैद में डाल देना, गोली मार देना या फांसी पर लटका देना उनके बाएं हाथ का खेल था। तब भारत के एक युगपुरुष ने एक अकेली लाठी और हर गरीब भारतीय की श्रद्धा के साथ अहिंसा का मार्ग अपनाकर हमें हमारे अभीष्ट तक पहुंचाया।
सोचिए! क्या वह संघर्ष इस महामारी से सरल रहा होगा? क्या हर रात्रि में सोने से पहले उस युगपुरुष को अगली सुबह देखने का भरोसा रहता रहा होगा? इतिहास के पन्नों में यात्रा करने के बाद आपको इसका उत्तर 'नहीं' में मिलेगा। उस विषम परिस्थिति में भी उस महामानव ने अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा। अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। अपने आप को कभी कमजोर महसूस नहीं होने दिया और उस संघर्ष की परिणति का अंतिम फल, हमारी स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के रुप में आपके सामने है।
इस कहानी और घटनाक्रम को कहने का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि सकारात्मकता और धैर्य में असीमित सामर्थ्य है। आज हर भारतीय को उसी की आवश्यकता है। हर व्यक्ति निराशा में घिरता है, हर व्यक्ति डरता है। लेकिन क्या इस डर को अपने ऊपर हावी हो जाने देना चाहिए। इसको एक कहानी से समझते हैं-
महाभारत के युद्ध के दौरान कर्ण के सारथी ने कर्ण से प्रश्न किया कि- "महारथी कर्ण आप तो सबसे बेहतरीन धनुर्धर है क्या आप को भी डर लगता है?"
कर्ण ने उत्तर दिया - "कोई काष्ठ पिंड ही होगा जिसे डर नहीं लगता होगा, लेकिन मुझे उस डर से पार पाना आता है। मुझे अपनी शक्तियां ज्ञात है और उन्हें संधान करने की प्रक्रियाएं भी। मेरा डर मुझे तभी हरा सकता है जब वे शक्तियां और प्रक्रिया मैं भूल जाऊं, जोकि असंभव है। अतः मैं डरा हुआ जरूर हूं लेकिन मेरा वह डर मुझे अधिक सजग बनाता है। अपने शक्तियों को प्रयोग करने की प्रक्रियाओं को अधिक व्यवस्थित करने की सलाह देता है।"
कहानी का आशय बस इतना है कि हमें अपने आत्मबल और संयम को नियंत्रित करने की जरूरत है। मनुष्यता की गोद में हर प्रकार की शक्तियां खेलती हैं, जो उसे भगवान बनाने तक ले जा सकती हैं। महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी का उदाहरण आपके समक्ष है। बस जरूरत है कि उनको संधान करने की प्रक्रियाओं की समझ और उन्हें अधिक व्यवस्थित करने की तरफ ध्यान देने की।
सकारात्मक ऊर्जा ही विषम परिस्थितियों में आपका सबसे मजबूत हथियार बनकर आपके साथ खड़ी रहती है, जो आपके गिरते आत्मविश्वास को ललकारती है। आपको बताती है कि आप ईश्वरीय निर्माण प्रक्रिया की सबसे अनुपम रचना हैं। हमारे धर्म ग्रंथ हमें बताते हैं कि हम ईश्वर का अंश हैं, तो क्या हम ईश्वर नहीं हैं? क्या अमृत का एक अंश अमृत नहीं होता है? क्या जहर का एक अंश जहर नहीं होता है?
हमारी चेतना का जुड़ाव हमारे जीवन की उत्तुंगता को निर्धारित करता है।
आप सबसे निवेदन है कि इस विषम परिस्थिति में अपने अंदर की सकारात्मक ऊर्जा को उसकी ऊंचाइयों पर ले जाएं। स्वयं को समझाएं कि हम उन पूर्वजों के अंश हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता की भीषण लड़ाईयों में भी बिना अस्त्रों के विजय पाई है। और आज जब हमारे पास सभी संसाधन मौजूद हैं तो क्या हम यूं ही हार जाएंगे? नहीं! हमें जीतना ही होगा। उन महान पूर्वजों के पितृऋण को चुकाने के लिए हमें यह युद्ध जीतकर अपने समाज के आने वाले कल को बेहतर बनाना ही होगा।
हम संघर्ष करेंगे और हम ही जीतेंगे या यूं कहें कि हमें जीतना ही होगा, आने वाले सुंदर भविष्य के लिए! उन वादों के लिए जो हमने अपने समाज और स्वयं से किए हैं। उन चेहरों के लिए, जिनमें हमने उम्मीदें देखी और जगाई हैं। उस भारत के लिए जिसे हमें विश्वगुरु बनाना है।
बनो संसृति के मूल रहस्य, तुम्हीं से फैलेगी वह बेल,
विश्व-भर सौरभ से भर जाय, सुमन के खेलो सुंदर खेल।
और यह क्या तुम सुनते नहीं विधाता का मंगल वरदान,
‘शक्तिशाली हो, विजयी बनो’ विश्व में गूँज रहा जय-गान।
-जयशंकर प्रसाद कृत'कामायनी' से।
सर्वे संतु निरामयाः।
copyrighte©2020
1 comment:
अद्भुत लेखन भैया
Post a Comment