Monday, 31 December 2018

प्रिय 2018 के नाम पत्र


प्रिय 2018,

            आज तुम्हारे साथ अंतिम दिन की शुरुआत कर चुका हूं, इसके बाद हम कभी नहीं मिलेंगे। जीवन का वह मोड़ सबसे कठिन होता है, जहां पर आप किसी से इस तरह बिछड़े कि दोबारा मुलाकात का संयोग तो दूर नियति ही ना हो। लेकिन स्मृतियों में और संस्मरणों में तुम हमेशा जीवंत रहोगे। एक मनुष्य के जीवन में उसकी युवावस्था के संस्मरण सबसे प्रमुख और प्रभावी होते हैं, और जब कि तुम मेरे जीवन के संक्रमण काल में मेरे साथ रहे हो तो तुमने भी पूरी तरह अपनी प्रभाविता स्थापित कर दी है।

Wednesday, 19 December 2018

खो गया है गाँव मेरा..


खो गया है गाँव मेरा।

एक प्रातः जब उभरती,
गाँव की चारो दिशाएँ
बचपनों से भर निखरतीं,
डालती है अब वहीं पर हृदय-शून्य उजास फेरा।

Wednesday, 5 December 2018

समझ नहीं पा रहा हूं मैं।



तुम्हें पढूँ या किताबें समझ नहीं पा रहा हूं। 
सपने बनूं या वादे समझ नहीं पा रहा हूं मैं 
अपनी खामोशियों में डूबा हुआ,
तुम्हें ताउम्र सुनना चाहता हूं,
तुम्हारी नटखटी शैतानियों को शब्द देते देते,
उन्हीं का होता जा रहा हूं मैं। 
समझ नहीं पा रहा हूं मैं। 

तुम्हारे फोन की पहली घंटी से,
शुभ रात्रि के अंतिम मैसेज तक.,
हर पल तुम्हें सुलझाता हुआ,
खुद ही उलझता जा रहा हूं मैं.,
हर रात सपनों की चादर में खुद को समेटे हुए,
तुम्हें पाने की चाहत को अपने दिल पर उकेरता जा रहा हूँ मैं,
तुममें पैबस्त होने की चाहत में उधेड़बुन किए जा रहा हूं मैं,
फिर भी कुछ तो है, जो समझ नहीं पा रहा हूं। 

तुम्हारा हंसना, रोना, झगड़ना, डांटना, फिर मान जाना,
और मुझे समझाना, 
सब मेरे लिए दुआओं से हो गए हैं,
अब तो युँ है आलम कि बस जिए जा रहा हूं मैं,
समझ नहीं पा रहा हूं॥

Copyright : ऋषि

मैं आधी नहीं हूं : ऋषि द्विवेदी



मैं आधी नहीं हूं मैं पूरी भरी हूं,
तेरी याद की बारिशों से हरी हूं,
वो हर शब्द मुझको रटा मुंहजबानी,
सुनायी कभी थी जो तूने कहानी,
तेरा युँ चहकना, कभी खिलखिलाना,
कभी मुझपे हँसना, मेरा रूठ जाना,
फिर रोना झगड़ना और नखरे दिखाना,
तुम्हारा मनाना मेरा मान जाना,
तुम्हारी मैं नदियां, तुम्हीं से बनी हूं,
तेरी याद की बारिशों से हरी हूं,
मैं आधी नहीं हूं...

वो सावन वो बारिश, तुम्हारी निशानी,
वो रस्ते वो गलियां, तुम्हारी कहानी,
वो बगिया में जाना, वो कोयल बुलाना,
वो उसका चहकना, तेरा मुस्कुराना,
वो शेरो सुख़न, वो तेरा गुनगुनाना,
तेरी शब्द सरिता कि मैं एक लड़ी हूं,
तेरी याद की बारिशों से हरी हूं,
मैं आधी नहीं हूं...

Copyright : RISHI

आशान्वित प्रेम : ऋषि द्विवेदी



बेचैन स्याह सी रातों में, हम चलते रहे और कहते रहे,
वह मेरा है मैं उसका हूं, और हर पल दुहाई देते रहे।

मिला न हमको पर कुछ भी, बस दर्द मिला दुत्कार मिली,
उन को यूं अपना कहने की, इतनी कीमत हर बार मिली। 

मैं सोच रहा हूं तब से ये, क्या करूं और कैसे रोकूं,
यह दिल पागल दीवाना है, समझाऊं या थोड़ा रो लूं।

पर प्रेम कभी मुश्किल होता है, थोड़ा दर्द भी देता है, 
एक सच्चा साथी पाने में, सच है कि वक्त तो लगता है।

तो चलिए फिर से शुरू करें, वह सफर जो उस तक जाना है,
जिसके कंधे पर सर रख कर, सारे दुख दर्द बताना है।

आशा है मेरी यह यात्रा, ईश्वर जल्दी ही पूर्ण करें,
और करें पल्लवित यह जीवन, सौभाग्य सुमंगल सुयश भरें।

COPYRIGHT : RISHI


Friday, 23 November 2018

प्रियं भारतम्॥

हमारा प्यारा भारत


प्रकृत्या सुरम्यं विशालं प्रकामं
सरित्तारहारै: ललामं निकामम्।
हिमाद्रिर्ललाटे पदे चैव सिन्धु:
प्रियं भारतं सर्वथा दर्शनीयम्॥1॥

धनानां निधानं धरायां प्रधानं
इदं भारतं देव लोकेन तुल्यम्।
यशो यस्य शुभ्रं विदेशेषु गीतं
प्रियं भारतं तत् सदा पूजनीयम्॥2॥

अनेका प्रदेशा: अनेकाश्च वेशा:
अनेकानि रूपाणि भाषा अनेका:।
परं यत्र सर्वे वयं भारतीया:
प्रियं भारतं तत् सदा रक्षणीयम्॥3॥

सुधीरा जना यत्र युद्धेषु वीराः
शरीरार्पणेनापि रक्षन्ति देशम्।
स्वधर्मानुरक्ताः सुशीलाश्च नार्यः
प्रियं भारतं तत् सदा श्लाघनीयम्॥4॥

वयं भारतीयाः स्वभूमिं नमामः
परं धर्ममेकं सदा मानयामः।
यदर्थं धनं जीवनं चार्पयामः
प्रियं भारतं तत् सदा वन्दनीयम्॥5॥

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Wednesday, 20 June 2018

पितृ-दिवस पर विशेष


भारत में अपने माता-पिता और गुरु को सम्मान देने और उन्हें भगवान समान समझने के संस्कार एवं नैतिक दायित्व चिरकाल से चलते आ रहे हैं। भारतीय संस्कृति में ‘पितृ-दिवस’ के मायने ही अलग हैं। यहां इस दिवस का मुख्य उद्देश्य अपने पिता द्वारा उनके पालन-पोषण के दौरान किए गए असीम त्याग और उठाए गए अनंत कष्टों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना अथवा स्वर्गीय पिताश्री की स्मृतियों को संजोना है ताकि हम एक श्रेष्ठ एवं आदर्श संतान के नैतिक दायित्वों का भलीभांति पालन कर सकें। इस तरह के सुसंकार भारतीय संस्कृति में कूट-कूटकर भरे हुए हैं। अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करने, उनके दिखाए मार्ग पर चलने, वृद्धावस्था में उनकी भरपूर सेवा करने आदि हर नैतिक दायित्वों का पाठ बचपन से ही पढ़ाया जाता है। भारतीय संस्कृति और पौराणिक साहित्य में माता-पिता और गुरु को जो सर्वोच्च सम्मान और स्थान दिया गया है, शायद उतना कहीं और किसी सभ्यता व संस्कृति में देखने को नहीं मिलेगा। हिन्दी साहित्य में ‘पिता’ को ‘जनक’, ‘तात’, ‘पितृ’, ‘बाप’, ‘प्रसवी’, ‘पितु’, ‘पालक’, ‘बप्पा’ आदि अनेक पर्यायवाची नामों से जाना जाता है। पौराणिक साहित्य में श्रवण कुमार, अखण्ड ब्रह्चारी भीष्म, मर्यादा पुरुषोत्तम राम आदि अनेक आदर्श चरित्र प्रचुर मात्रा में मिलेंगे, जो एक पिता के प्रति पुत्र के अथाह लगाव एवं समर्पण को सहज बयां करते हैं।

Tuesday, 5 June 2018

प्यार नहीं अब दुनिया में।


आज सुना है चलते चलते प्यार नहीं अब दुनिया में,
किसी की मीठी बातों पर एतबार नहीं अब दुनिया में।

गले लगाया इश्क किया और तन की प्यास बुझाली बस,
सपनों जैसा सजा सजीला श्रृंगार नहीं अब दुनिया में।

याद भी आई उनकी तो, बस मतलब का ही जिक्र किया,
बेमतलब मुलाकातों के आसार नहीं अब दुनिया में।

जन्मदायिनी माता हो या पोषक पिता की चर्चा हो,
खून से सींचे रिश्तों का भी सम्मान नहीं अब दुनिया में।

रात में जुगनू पूछ रहे थे कहो तो मैं भी साथ चलूं,
रिश्ते भी अब श्रद्धा के हकदार नहीं जिस दुनिया में।

ऋषि

©copyright reserved..

Tuesday, 13 March 2018

अब तुम्हारी बारी



प्रिय,
         आज सुबह तुम्हें फिर देखा था | चेहरे पर खामोशी, निगाहों में बेचैनी, पैरों में तूफान लिए, कहीं भागी जा रही थी तुम | सोचा कि रोक कर पूछूं "कहां जा रही हो, क्यों परेशान हो, बताओ शायद कुछ मदद ही कर पाऊं |" लेकिन फिर डर गया कि कहीं कल की तरह फिर डांटने न लगो कि "तुमसे क्या मतलब है मैं चाहे जिउँ या मरूं |" तुम तो गुस्सा दिखा कर चली जाती हो | लेकिन फिर मेरी रातों का सुकून छिन जाता है, मेरी आंखों से नींद दुश्मनी सी कर लेती है और बिस्तर तो जैसे काटने को दौड़ता है | हर दिन अकेले कमरे में बैठकर सोचता रहता हूं कि आखिर ये कैसा रब्त है हमारे-तुम्हारे बीच जो मुझे तुम्हारे बारे में सोचने के लिए मजबूर कर देता है | हर रोज उस गली से गुजरते हुए तुम्हारी बालकनी की तरफ देखता हूं और तुम्हें ना पाकर बेचैन हो उठता हूं | मन में अजीब प्रश्न उठने लगते हैं, कि तुम स्वस्थ तो हो| शायद इसी लगाव को प्यार कहते हैं| मैं तो कभी इस रिश्ते को परिभाषित नहीं कर पाऊंगा और ना ही कोई नाम दे पाऊंगा | क्योंकि इसमें तो सिर्फ मैं हूं | तुमने तो जानना भी नहीं चाहा कि यह रिश्ता क्या है ? लेकिन कभी जीवन ने और ईश्वर ने इतना समय और साहस दिया कि तुमसे रूबरू होकर तुम्हारा खुद से परिचय करा पाऊँ, तो जरूर बताऊंगा कि, तुम्हें खुद में जीते हुए मैंने एक अरसा गुजार दिया है और 'अब तुम्हारी बारी' है |

तुम्हारा "Mr R."

Copyright : Rishi

Monday, 22 January 2018

बसंत पंचमी पर विशेष..

मां सरस्वती
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥