Wednesday, 5 December 2018

आशान्वित प्रेम : ऋषि द्विवेदी



बेचैन स्याह सी रातों में, हम चलते रहे और कहते रहे,
वह मेरा है मैं उसका हूं, और हर पल दुहाई देते रहे।

मिला न हमको पर कुछ भी, बस दर्द मिला दुत्कार मिली,
उन को यूं अपना कहने की, इतनी कीमत हर बार मिली। 

मैं सोच रहा हूं तब से ये, क्या करूं और कैसे रोकूं,
यह दिल पागल दीवाना है, समझाऊं या थोड़ा रो लूं।

पर प्रेम कभी मुश्किल होता है, थोड़ा दर्द भी देता है, 
एक सच्चा साथी पाने में, सच है कि वक्त तो लगता है।

तो चलिए फिर से शुरू करें, वह सफर जो उस तक जाना है,
जिसके कंधे पर सर रख कर, सारे दुख दर्द बताना है।

आशा है मेरी यह यात्रा, ईश्वर जल्दी ही पूर्ण करें,
और करें पल्लवित यह जीवन, सौभाग्य सुमंगल सुयश भरें।

COPYRIGHT : RISHI


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