मैं जानना चाहता हूँ
सुबह तुम्हारे साथ जागना कैसा लगता है
याकि तुम्हारे बाहों में लिपटे हुए
कैसे गुजरता है दिन
कैसी होती हैं वे शामें
जब तुम्हारे हाथों से बनी चाय
मेरे होंठों को छूती है…
मैं देखना चाहता हूँ
प्लेटफार्म के किसी कोने में
फूलों का गुलदस्ता ले
इंतज़ार करते तुम्हारे चेहरे की बेचैनी
और ट्रेन से उतरता देख
एक मासूम बच्चे की तरह
मेरी तरफ़ भागते हुए
तुम्हारे चेहरे पर खिली मुस्कान पर
बिखरे तुम्हारे बाल
मेरे पास आना बाहों में भरना
और वो कसाव जो मेरी साँसें रोक दे…
मैं पढ़ना चाहता हूँ
एक प्रेमिल उपन्यास
तुम्हारी गोद में सिर रख कर
जिसकी नायिका बिलकुल तुम्हारे जैसी हो
और जब कहानी में वो नायक को चूमे
तो तुम भी झुक कर चूम लो मेरे होंठ
और तुम्हारे बाल मेरे ऊपर ऐसे बिखरें
जैसे आसमान ने पृथ्वी को ढक रखा है…
मैं तुम्हें पाना चाहता हूँ
जैसे कृष्ण ने प्रेम में
मुट्ठिभर चावल के बदले
न्यौछावर कर दिए अपने लोक
और सौंप दिये सुदामा को बिना शर्त
जैसे नदियाँ मिल जाती हैं सागर को
अपना रूप और नाम भूल कर
एक हो जाने के लिए आतुर…
मैं तुम्हें जीना चाहता हूँ!
और केवल तुम्हारा होकर
भूल जाना चाहता हूँ
अस्तित्ववाद के दार्शनिकों का दर्शन!
और तुममें ऐसे डूबना चाहता हूँ कि
मेरा होना तुम्हारे होने से परिभाषित हो।
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