Sunday, 17 July 2022

Bridgerton की रस्में : एक विचार



साहित्य समाज को कैसे बदलता है इसके लिए हमें बड़े ग्रंथों और 10000 साल के सामाजिक इतिहास को खंगालने की ज़रूरत नहीं है। हमारे आस पास होते परिवर्तनों से भी हम इसका अंदाज़ा भलीभांति लगा सके हैं; इसके लिए कोई समकालीन उपन्यास, कहानी, चलचित्र या शॉर्ट फिल्म भी उतने ही मददगार साबित होते हैं, जितने पुराने ऐतिहासिक ग्रंथ या नैतिक कहानियां;

मसलन, एक वेब सिरीज़ ड्रामा है नाम है Bridgerton! यह बेस्ड है यूरोप के राजशाही के दौरान के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर, जहां हमें पता चलता है कि कैसे उस समय स्त्रियां एक प्रोडक्ट की तरह तैयार की जाती थीं और बॉल डांस का आयोजन कर उन्हें लड़कों के सामने खाने की तरह परोसा जाता था; जहां वे अपने लिए पत्नियां चुनते थे।

Saturday, 16 July 2022

उत्तर प्रदेश : विभाजन और विकास



पिछले एक हफ़्ते से एक शोध पत्र लिखने की कोशिश में था कि संयुक्त प्रांत से उत्तर प्रदेश हुए इस बड़े भूभाग, जिसकी आबादी ब्रिटेन से भी अधिक है, को कैसे विभाजित किया जाए कि समृद्धि और शिक्षा की अलख राज्य के जन-जन तक सुचारू प्रवाहित हो सके और पुराने विभाजित आंकड़ों के आधार पर यह कैसे समझाया जाए कि विभाजन समृद्धि ही लायेगा? उत्तराखंड का संघर्ष निराश करने वाला रहा है फिर भी इसके विकास और प्रशासनिक व्यवस्था के सुधार से कुछ तो उम्मीद की ही जा सकती है।

लेकिन भावनात्मक मन उत्तर प्रदेश के विभाजन को सुन मेरे तार्किक मन से लड़ पड़ता है। माटी के प्रति श्रद्धा ने देश से उतर राज्य हेतु प्रेम को भी पुष्ट किया है। मुझ पर क्षेत्रवाद का इतना गहरा प्रभाव नहीं है फिर भी बचपन से आज तक पता लिखते हुए गांव, थाना, तहसील, जिला और फिर राज्य का नाम इतनी बार रिपीट हुआ है कि अब भूलता ही नहीं; अब ऐसे में छेड़छाड़ हो तो मन विरोध तो करेगा ही! आखिर भावना से भावना का वरण ही तो एक मनुष्य की सांस्कृतिक पहचान होती है।

Thursday, 14 July 2022

मेरा संघर्ष


मैंने सुना था जब कोई विद्वान होता है, खासकर संस्कृत भाषा का जानकार, उसके शब्द चयन में एक अद्भुत सुंदरता होती है और मेरे जीवन में इसके प्रथम उदाहरण मेरे पिताश्री स्वयं हैं। किसी विषय पर व्यवस्थित चर्चा करते समय वे अनायास ही अनेक श्लोक और शास्त्र के संदर्भों का जिक्र कर देते हैं। मेरे लिए सामान्य से लगने वाले विषय की चर्चा भी वे महान मानदंडों पर करते हैं। उनकी सामान्य जीवन की बातें भी बौद्धिक शब्द भंडार से भरी हुई होती हैं।

फिर जीवन कुछ अन्य संस्कृत के विद्वानों से मिलवाता है, जो स्वयं को विद्यार्जन हेतु स्व-प्रदेश से हरिद्वार तक खींच कर ले गए। और जब मैं उनसे हिंदू धर्म में विद्यमान दोष और उनके निवारण पर चर्चा करना चाहता हूं, हिंदू धार्मिक कर्म-कांड के विषय में जानना चाहता हूं तो वे मुझसे पूछते हैं कि क्या आपने संस्कृत पढ़ी है और जब मैं जवाब देता हूं- नहीं, तो मेरा मखौल उड़ाते हैं। मेरा तर्क पूर्ण होने से पूर्व वे अपनी आत्ममुग्ध भाषा में कहते हैं की " फेंको मत सुनो"। मेरे अंदर का युवक विचलित हो उठता है लेकिन मेरे संस्कार उसे बांध लेते हैं और उनका सम्मान करने की निष्ठा से मुझे विचलित नहीं होने देते।

दीपावली या दीपदान उत्सव


एंड्रोमेडा गैलेक्सी में स्थित लुंबनी नामक ग्रह से अपने यूएफओ पर सवार हो विचरण करने निकले महान बुद्ध ने आकाशगंगा में सूर्य से अलग एक पिंड को धुधुआ कर जलते हुए द्रवित हृदय से देखा और अपनी लंबी, सुनहरी उंगलियों से उस गोल से जलते पिंड(जिसे कालांतर में पृथ्वी कहा गया) को सहलाने लगे। सहलाते हुए हाथ जल जाने से उत्पन्न पीड़ा की वजह से निकले आंसू की कुछ बूंदें उस पिंड पर गिर पड़ीं। बुद्ध के आसुओं से सम्यक जल ग्रहण कर पिंड ठंडा पड़ गया और मृदु जल के सोते फुट पड़े। बचे आसुओं को बुद्ध ने अपने नखों से बनाए गए छोटे से गड्ढे में डाल दिया, जिसे कालांतर में महासागर के नाम से जाना गया।

बुद्ध ने फिर ध्यान लगाकर पुकारा - “आनंद”, और एक सुंदर पुरुष प्रकट हुआ, जिसे कालांतर में बुद्ध के प्रिय शिष्य के रूप में ख्याति प्राप्त हुई। आनंद ने प्रकट होते ही बुद्ध से कहा - महाबाहो! आपके आंसुओं ने तो इस पिंड की सारी अग्नि बुझा दी; अब तो न रात्रि में देखने के लिए प्रकाश स्रोत है, न ही भोजन पकाने के लिए अग्नि; प्रबंध कीजिए तात! तत्पश्चात बुद्ध ने मिट्टी के एक टुकड़े को जल में डुबो कर नर्म किया और गूंथ कर दीपक बनाया; कपास के पौधे को पैदा कर उससे सम्यक रेशे उधार लिए; सरसों का आवाह्न कर सम्यक तेल मांगा; फिर दीपक में तेल डाल, उसमें रेशे को डुबोकर उसकी परिक्रमा करने लगे।

मैंने जीवन हो उगते देखा है।



मेरे घर के पीछे वाली बगिया में
एक सूखे बरगद के नीचे अक्सर
बच्चों का एक झुंड, गिल्ली- डंडों, गोलियों
के साथ खेलने आ जाता था
और वापस जाते हुए साथ ले जाता था
उस बरगद की सूखकर—टूटकर
जमींदोज हुई शाखें

अपने अंतिम दिनों में बरगद
अपने पुराने दिनों को याद कर
हिलने लगता था
और साथ में हिलने लगती थीं
उसकी सूखी आजानुबाहु भुजाएं
फिर टूटकर गिरने—बिखरने के लिए
रोज का यही क्रम होता
मृत्यु की ओर एक-एक कदम बढ़ाते हुए
बरगद मानो अपने शरीर को हल्का कर रहा हो

Friday, 1 July 2022

मेरे शिव की रात्रि | महाशिवरात्रि


आज महाशिवरात्रि है। वर्ष की 12 शिवरात्रिओं में महाशिवरात्रि को विशेष दर्जा प्राप्त है। हो भी क्यों ना, आज मेरे आराध्य शिव का विवाह हुआ था, मां पार्वती के साथ। कुछ लोग सृष्टि की शुरुआत के तौर पर भी इस दिन को पूजते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी (आज दोपहर २:३० तक त्रयोदशी है) को महाशिवरात्रि का महापर्व आयोजित किया जाता रहा है और जैसा कि आज वही तिथि है तो आयोजन भी शुरू हो गए हैं।

लोग व्यस्त हैं। सबको सुबह नहा-धो कर, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा, गाय का दूध, चंदन, रोली, केसर, भस्म, कपूर, दही, मौली, अक्षत्, शहद, मिश्री, धूप, दीप, हल्दी, नागकेसर, फल, गंगा जल, वस्त्र, जनेऊ, इत्र, कुमकुम, पुष्पमाला, शमी पत्र, खस, लौंग, सुपारी, पान, रत्न-आभूषण, इलायची, फूल, आसन, श्रंगार की सामग्री, पात्र और दक्षिणा आदि लेकर मंदिर जाने की जल्दी है। दुकान वालों के पास भी चढ़ावे कम पड़ रहे हैं। मंदिरों में एक अजब-सा प्रतिस्पर्धात्मक समन्वय है। भक्त एक दूसरे को भावमय नजरों से देख रहे हैं और उनके लिए रास्ता बना दे रहे हैं। कोई धक्का-मुक्की नहीं है, बस सब शिवमय है। प्रतीत होता है मानो शिव लास्य तांडव में मग्न है और संपूर्ण जगत मुग्ध हुआ जाता है।