Thursday, 14 July 2022

मैंने जीवन हो उगते देखा है।



मेरे घर के पीछे वाली बगिया में
एक सूखे बरगद के नीचे अक्सर
बच्चों का एक झुंड, गिल्ली- डंडों, गोलियों
के साथ खेलने आ जाता था
और वापस जाते हुए साथ ले जाता था
उस बरगद की सूखकर—टूटकर
जमींदोज हुई शाखें

अपने अंतिम दिनों में बरगद
अपने पुराने दिनों को याद कर
हिलने लगता था
और साथ में हिलने लगती थीं
उसकी सूखी आजानुबाहु भुजाएं
फिर टूटकर गिरने—बिखरने के लिए
रोज का यही क्रम होता
मृत्यु की ओर एक-एक कदम बढ़ाते हुए
बरगद मानो अपने शरीर को हल्का कर रहा हो
फिर बरसात आ गई
और नंगा खड़ा बरगद अपने शरीर को
भीगने से नही बचा पाया
जड़ों के पास घुटनों तक भरे पानी ने
उसे बच्चों से भी दूर कर दिया
निरंतर होती बरसात के साथ
उसके तन पर चिपकी सूखी छालें
भी अब धुल गईं
बरगद अब मर रहा था
बचा था एक मृत ठूंठ और कुछ नहीं

फिर एक सुबह दातुन मुंह में डाले
मैंने पश्चिम की तरफ से आते हुए
पक्षियों के एक विशाल झुंड को देखा
वे बरगद के ऊपर से उड़ते हुए
क्षितिज में विलीन होते जा रहे थे
तभी दिखा चमकीली हरी कोपलों का एक गुच्छा
बरगद की सूख चुकी आधी टूटी ठूंठ से
आसमान की ओर झांकता हुआ
मां ने बताया कि प्रत्येक बरसात के बाद
सूखे बरगद पुनः हरे हो जाते हैं
वे मरा नहीं करते

मैं जीवित होते बरगद की
पहली सांस देख दिल्ली आ चुका हूं
इस घटना को महीनों बीत चुके हैं
आज मां ने व्हाट्सएप पर एक तस्वीर भेजी है
बरगद जिंदा हो चुका है, एकदम प्रौढ़
अब आजानुबाहु भुजाएं हिलते हुए टूटती नहीं हैं
बच्चे ही नहीं, पक्षियों और बंदरों ने भी
उन पर नए घर बनवा लिए हैं
एक मृत शरीर की धमनियों और शिराओं
में नवीन रक्त उग आया है
सूने पड़े हृदय की धड़कने
पुनः जीवंत हो उठी हैं
और मैं जीवन को पुनः उगते देख रहा हूं।



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