एंड्रोमेडा गैलेक्सी में स्थित लुंबनी नामक ग्रह से अपने यूएफओ पर सवार हो विचरण करने निकले महान बुद्ध ने आकाशगंगा में सूर्य से अलग एक पिंड को धुधुआ कर जलते हुए द्रवित हृदय से देखा और अपनी लंबी, सुनहरी उंगलियों से उस गोल से जलते पिंड(जिसे कालांतर में पृथ्वी कहा गया) को सहलाने लगे। सहलाते हुए हाथ जल जाने से उत्पन्न पीड़ा की वजह से निकले आंसू की कुछ बूंदें उस पिंड पर गिर पड़ीं। बुद्ध के आसुओं से सम्यक जल ग्रहण कर पिंड ठंडा पड़ गया और मृदु जल के सोते फुट पड़े। बचे आसुओं को बुद्ध ने अपने नखों से बनाए गए छोटे से गड्ढे में डाल दिया, जिसे कालांतर में महासागर के नाम से जाना गया।
बुद्ध ने फिर ध्यान लगाकर पुकारा - “आनंद”, और एक सुंदर पुरुष प्रकट हुआ, जिसे कालांतर में बुद्ध के प्रिय शिष्य के रूप में ख्याति प्राप्त हुई। आनंद ने प्रकट होते ही बुद्ध से कहा - महाबाहो! आपके आंसुओं ने तो इस पिंड की सारी अग्नि बुझा दी; अब तो न रात्रि में देखने के लिए प्रकाश स्रोत है, न ही भोजन पकाने के लिए अग्नि; प्रबंध कीजिए तात! तत्पश्चात बुद्ध ने मिट्टी के एक टुकड़े को जल में डुबो कर नर्म किया और गूंथ कर दीपक बनाया; कपास के पौधे को पैदा कर उससे सम्यक रेशे उधार लिए; सरसों का आवाह्न कर सम्यक तेल मांगा; फिर दीपक में तेल डाल, उसमें रेशे को डुबोकर उसकी परिक्रमा करने लगे।
तब तक शाम घिर आई थी; सूर्य पुनः लाल होने लगे थे; प्रकाश सिमटता हुआ पश्चिम की तरफ भाग रहा था; कार्तिक मास की अमावस्या अपना रूप दिखाना शुरू कर चुकी थी। आनंद ने कतार स्वर में बुद्ध से प्रार्थना की- “भंते! मैं अंधेरे से बहुत डरता हूं; एंड्रोमेडा पर तो आपने सोलर प्लांट लगा रखे हैं, जिससे हमेशा प्रकाश पुंज दसों दिशाओं में विस्तारित होते रहते हैं। फिर मुझ दीन से क्या अपराध हुआ, जो मुझे आप अंधकार को सौंप रहे हैं? त्राहिमाम तात!”
बुद्ध ने मुस्कराते हुए आनंद को देखा और अपनी सम्यक ऊर्जा से बनाए उस दीपक को अपने बाएं हाथ पर रख दाहिने हाथ की तर्जनी और अंगूठे को आपस में रगड़ा, जिससे निब्बा-निब्बी के द्वारा प्रयुक्त होने वाले प्रतीकात्मक दिल की आकृति बन गई और अग्नि की एक पतली रेखा अंगूठे और तर्जनी के जंक्शन से उत्पन्न हुई। बुद्ध ने उस अग्नि की रेखा से दीपक को प्रज्वलित किया और पूर्व दिशा में मुंह करके खड़े आनंद को उपहार स्वरूप प्रदान किया, जिसे कालांतर में “दीपदान उत्सव” के नाम से जाना गया।
आनंद के द्वारा जीवन उत्पति की कहानी फिर कभी...
NOTE : बुद्ध जिस यूएफओ से ब्रह्माण्ड घुमने निकले थे उसे चन्ना ड्राइव कर रहे थे; चन्ना इज ए कूल ड्राइवर! वे एक बार बुद्ध जी के कहने पर फार्मूला वन में भी पार्टिसिपेट कर चुके हैं।
1 comment:
Namaskar sir me vidyakul ka student hu or saath hi saath budhhist bhi hu mera question ye h ki buddha ne jab chamatkar jaise chijo ko nahi mana to tum unke saath chamatkar kyu jhod rahe ho
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