मेरे घर की तरफ से गुजरते हुए
पत्थर पर लिखे कुछ शब्द
एक रास्ता बताते हैं
जो दूर शहर जाता है
जहां सालों से मैं एक कमरे की
सख्त दीवारों में कैद
तन्हाईयां बोता, काटता, बनाता हूं।
एक मोबाइल
मेरे और मेरे घर के दरमियां
गुलजार करता है रिश्तों को
खुशियों को, अपने-पन को
फेसटाइम कुछ चेहरे दिखाता है
उनके, जिनसे मेरा घर बनता है
और बनते हैं मेरे एहसासात
के गुलिस्तान।
मैं एक गांव को अपने अंदर लिए
शहर की चिल्लाती गलियों में
पीपल की छांव और
कोयल की आवाजें तलाशता हूं
और खोजता हूं एक आम का पेड़
जिस पर टिकोरे लगे हों
एक जामुन का पेड़
जो पानी में डूबा हुआ हो
और एक छप्पर
जिसकी वरौनियों से गिरते पानी से
बनी नालियों में
मेरी नाव बिना पतवार तैर सके।
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