Sunday, 12 September 2021

#BLOG1 / क्षमा पर्व : बौद्ध व जैन(वैदिकोत्तर धर्म)

जिस तरह प्राणियों में सहोदर होते हैं, उसी प्रकार बौद्ध और जैन धर्मों में सहोदर हैं। इनकी उत्पति का कारण और समय लगभग एक ही है। एक विशेष अंतर तीर्थंकर को लेकर उत्पन्न होता है लेकिन यदि सूक्ष्म दृष्टि का सहारा लें तो द्वितीय नगरी क्रांति और महावीर व महात्मा(थोड़े वार्षिक अंतर के साथ) एक साथ भारतीय उपमहाद्वीप के पटल पर उभरते हैं। प्रक्रियागत विभेदों का विवेचन किया जाए तो इनके आकार व विस्तार के अधिकांश लक्षण आपको उपनिषदों के सानिध्य में बुने दिखाई देंगे; उदाहरणार्थ : सांख्य दर्शन और महावीर व बुद्ध का ज्ञान प्राप्ति के बाद प्रकृति उपासक होना संबंध का एक विस्तारित पुट प्रदर्शित करता है।


ऐसे में जब दोनों धर्म साथ-साथ अपना स्वरूप–अपना सिद्धांत–अपना दर्शन पैदा कर रहे थे तो दोनों में कई तत्त्वों का एक समान होना उतना ही स्वाभाविक था जैसे जुड़वा बच्चे होने पर एक जैसी शक्ल और आदतों का होना। जैसे–

१. बौद्ध धर्म के पंचशील और जैन धर्म के पंच महाव्रत(नैतिक स्तर)

२. बौद्ध धर्म में अष्टांगिक मार्ग और जैन धर्म में त्रिरत्न(नैतिक स्तर)

३. दोनों धर्मों द्वारा कर्मकांड का विरोध, ब्राम्हण वर्चस्व को चुनौती, वेदों को नकारना, ईश्वर को नकारना, सांख्य दर्शन को आधार बनाकर अपने अनुकूल परिवर्तनों द्वारा प्रकृति की सर्वोच्चता को स्वीकारना(धार्मिक स्तर)

४. दोनों धर्मों द्वारा अहिंसा को सामाजिक नवाचार के रूप में स्थापित करना, समाज के सभी वर्गों के लिए(दासों को छोड़ कर) अपने पंथ का मार्ग खुला रखना(सामाजिक स्तर)

५. दोनों धर्मों में धर्म की मिशनरी भावना, दीक्षा संस्कार की व्यवस्थित पद्धति, नियम आदि के पालन पर जोर(संस्थागत स्तर)

आदि।


इन समानताओं के साथ-साथ पर्वों में भी समानताएं स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं, जिसमें हाल ही में मनाया गया जैन धर्म का महत्वपूर्ण पर्व ‘पर्युषण महापर्व’ है। पर्यूषण महापर्व (जिसे दशलक्षण पर्व के नाम से भी जाना जाता है), सावन के बाद भादों (भाद्रपद) के महीने में जैन धर्म के अनुयायियों के द्वारा मनाया जाता है। जैन समुदाय के दोनों सम्प्रदायों- दिगंबर और श्वेतांबर, के लिए यह पूरा माह आत्मशुद्धि और सार्वभौम क्षमा को समर्पित है। इस पर्व का मूल मंत्र है सबसे क्षमा और सबको क्षमा।


अब बौद्ध धर्म की तरफ देखें तो वर्षा के चातुर्मास विश्राम के बाद पुनः भ्रमण शुरू करने से पहले बौद्ध भिक्षुओं द्वारा मनाए जाने वाले पर्व को ‘परवन’ कहते हैं। इस पर्व में बौद्ध भिक्षु अपने व्यतीत जीवन में हुई गलतियों के लिए पश्चाताप करते हैं, अपना अव्यवस्थित स्वीकारते हैं, अपने अतीत में हुए पाप के लिए क्षमा याचना करते हैं। यह प्रक्रिया भी पर्यूषण महापर्व जैसी ही उपवास के माध्यम से व अन्य उपलब्ध रीतियों से साधना तप आदि द्वारा क्रियान्वित होती है।


इसी प्रकार अन्य धर्मों में भी देखें तो भारतीय उपमहाद्वीप में क्षमायाचना एक संस्कार के रूप में विद्यमान रही है। प्रकृति पूजा हो या वैदिक-पौराणिक अनुष्ठान, पूर्णाहुति के बाद अशुद्धियों की क्षमायाचना के लिए सृष्टि के आरम्भ से हमारे पूर्वजों ने पद्धति और स्तोत्रों का विशद विवेचन किया है। हर धार्मिक ग्रंथ पढ़ते हुए अंतिम पृष्ठों पर आपको उस ग्रंथ विशेष से संबंधित क्षमायाचना पद्धति मिल जायेगी। समय के साथ उनके अभ्यास की शिथिलता और सनातन संस्कृति के केयरलेस चरित्र ने बहुत सी सुंदर व्यवस्थाओं को भुला भी दिया है, नहीं तो यदि गौर करें तो पाएंगे कि कुएं से पानी निकलने से पहले कुएं से क्षमा मांगना या नीम की दातुन तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ने से पहले वृक्ष से क्षमा मांगना आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में पूरी श्रद्धा से अभ्यास की जाने वाली प्रथाएं हैं।


तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि अन्य धर्मों में ऐसी व्यवस्था नहीं है, जैसा कि कुछ बुद्धिमान लोगों का कहना/मानना है। मैंने तो समान समय के दो धर्मों में ही आपको लक्षणों की समानता बताई है; बाकी जिस घर से इन्होंने अपने संस्कार लिए हैं, उसके पिटारे में जाने कितने ऐसे रहस्य होंगे; जो मात्र इस लिए उद्घाटित नहीं हो पाए होंगे क्योंकि हम स्वयं में आवश्यक पात्रता ही पैदा नहीं कर पाए।


~ ऋषि

*****

No comments: