Tuesday, 8 December 2020

तुम्हारा होना और ना होना।

 


जब तुम साथ होती है तो मेरे शब्द मुखरित नहीं हो पाते,
वे आवाज में बदलने से पहले डूब जाते हैं तुम्हारी आंखों में
या कहीं और,
मेरे फड़फड़ाते होंठ दब जाते हैं तुम्हारे मधुर चुम्बनों के भार से,
और हृदय की धड़कनें दबा दी जाती हैं तुम्हारे कोमल वक्षस्थलों द्वारा।

यदि तुम चाहती हो कि मैं बनूं एक बड़ा कवि
और लिखूं कुछ प्रसिद्ध गीत, गज़लें, कविताएं, शायरियां
जिसमें हो तुम्हारे होठों, आंखों, नैन-नक्श की बातें,
या बनूं एक बड़ा लेखक
और लिखूं कोई प्रेम के विभिन्न आयामों की कहानी
या प्रेम में डूबा कोई महान उपन्यास,
जिसको पढ़ते हुए लोग तुम्हें शब्दों के माध्यम से निहार सकें
और महसूस कर सकें तुम्हारा होना, मेरे होने से।

तो चली जाओ मुझसे कहीं दूर, बहुत दूर 
और अदृश्य हो जाओ कहीं पहाड़ों में या किसी घने जंगल में
जैसे लूसी खो गई थी उस सर्द रात्रि में
फिर कभी ना मिलने के लिए,

और मैं तुम्हारे प्रेम में डूबा हुआ, बिलखता
तुम्हें अपने शब्दों में आकार दे तुमसे मिलने की कोशिश करूं,
या मध्यरात्रि में सहसा उठ कर तुम्हारे जाने की दिशा में देखता हुआ
कोई विरह का गीत लिखूं,
या तुम्हारे विलगन की वेदना में रोते हुए
आंसुओं से एक चित्र बनाऊं जो सुबह तक कहानी की शक्ल ले ले।

तो चुनो, क्या चाहती हो तुम मेरे लिए
मुखरित प्रसिद्धि या चुप और गुमनाम जिंदगी?


copyright©2020

Image Credit : Yoann Boyer 

2 comments:

Unknown said...

♥️💐

प्रणव said...

सुन्दर अभिव्यक्ति ❤️