Friday, 1 July 2022

मेरे शिव की रात्रि | महाशिवरात्रि


आज महाशिवरात्रि है। वर्ष की 12 शिवरात्रिओं में महाशिवरात्रि को विशेष दर्जा प्राप्त है। हो भी क्यों ना, आज मेरे आराध्य शिव का विवाह हुआ था, मां पार्वती के साथ। कुछ लोग सृष्टि की शुरुआत के तौर पर भी इस दिन को पूजते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी (आज दोपहर २:३० तक त्रयोदशी है) को महाशिवरात्रि का महापर्व आयोजित किया जाता रहा है और जैसा कि आज वही तिथि है तो आयोजन भी शुरू हो गए हैं।

लोग व्यस्त हैं। सबको सुबह नहा-धो कर, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा, गाय का दूध, चंदन, रोली, केसर, भस्म, कपूर, दही, मौली, अक्षत्, शहद, मिश्री, धूप, दीप, हल्दी, नागकेसर, फल, गंगा जल, वस्त्र, जनेऊ, इत्र, कुमकुम, पुष्पमाला, शमी पत्र, खस, लौंग, सुपारी, पान, रत्न-आभूषण, इलायची, फूल, आसन, श्रंगार की सामग्री, पात्र और दक्षिणा आदि लेकर मंदिर जाने की जल्दी है। दुकान वालों के पास भी चढ़ावे कम पड़ रहे हैं। मंदिरों में एक अजब-सा प्रतिस्पर्धात्मक समन्वय है। भक्त एक दूसरे को भावमय नजरों से देख रहे हैं और उनके लिए रास्ता बना दे रहे हैं। कोई धक्का-मुक्की नहीं है, बस सब शिवमय है। प्रतीत होता है मानो शिव लास्य तांडव में मग्न है और संपूर्ण जगत मुग्ध हुआ जाता है।

मैं अपने बिस्तर पर बैठा सोच रहा हूं कि आज मेरे आराध्य कितने व्यस्त होंगे। कितनी रैलियों में जाना होगा उन्हें, कितने भाषणों में भक्तों को संबोधित करना होगा। कुछ में तो अपने गणों को भेजेंगे और कहीं स्वयं पधारेंगे। यह सामान्य प्रक्रिया है, आहत होने जैसी कोई बात नहीं है; गणों का भेजा जाना भी यह सुनिश्चित करता है कि शिव आपके लिए चिंतित हैं। शाम को उन्हें विवाह मंडप में भी तो उपस्थित रहना है।

मैंने निर्णय लिया है कि आज अपने आराध्य को नहीं पुकारूंगा, उनकी व्यस्तता में विघ्न नहीं डालूंगा, आपाधापी में आराधना नहीं करूंगा। आखिर एक सच्चा भक्त ही तो उनकी परेशानियों को स्वयं की परेशानी मान सहायतार्थ अपने को अर्पित करेगा। आप कहेंगे, सहायतार्थ कैसे? मैं कहूंगा, बुलाता तो उन्हें आना ही पड़ता, नहीं बुलाऊंगा तो कम से कम एक स्थान पर जाने का समय तो बचेगा; यह सहायता ही है। एक भक्त अपने अधिकार ऐसे ही नही छोड़ता।

सोच रहा हूं कि इन व्यस्तताओं की समाप्ति के बाद किसी दिन अपनी बगिया में बैठ मिट्टी का शिवलिंग बनाऊंगा और अपने आराध्य को पूजन हेतु पुकारूंगा। वे सहर्ष और पूर्ण चेतना में आ सकेंगे। फिर हम पीपल की छांव में बैठकर लंबी बातें करेंगे; पूछूंगा कि विवाह के बाद कैसी कट रही है कैलाश पर? मां पार्वती कैसी हैं? पूछूंगा कि कैलाश से मेरी बगिया तक आने में कितने नदी, मैदानों और पहाड़ों को पार करना पड़ा? ऐसे प्रश्न आज कल UPSC में बहुत पूछे जाते हैं। हाल ही में हुई उत्तराखंड की त्रासदी और उससे बचने के उपायों पर चर्चा करूंगा। साथ ही विश्व को और अधिक रम्य बनाने के उपाय भी जान लूंगा।

अंत में आर्य होने के नाते धन-धान्य और सुख समृद्धि मांग लूंगा, मोक्ष तो हम आर्यों चाहिए ही नहीं। मैं उनसे आरोग्य मांगूंगा, अपने स्वजनों और पशु पक्षियों के लिए; आखिर वे पाशुपति और वैद्यनाथ भी तो हैं। अपने जीवन के झंझावातों को सहने की शक्ति मांगूंगा; वे झंझावत के देवता भी तो हैं। फिर अपने हिस्से का आशीर्वाद मांग, विदा करूंगा; इस वादे के साथ कि अगली बार आएं तो एक मुखी रुद्राक्ष की एक माला भी लेते आएं, १०८ दानों वाली; मुझे बहुत प्रिय है।
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~ ऋषि द्विवेदी


 

1 comment:

Anonymous said...

अद्भुत sir