#लॉकडाउन_डायरीज 📖
शाम के समय हल्की बारिश के साथ मंद पवन हौले से स्पर्श करके भागी और मैं भी उसके साथ साथ अपनी बालकनी में सुहावने होते मौसम का मजा लेने निकल आया। देखते ही देखते बारिश भी तेज हुई और उस छोटी पवन ने आंधी का रूप ले लिया। मैं अपने भावनात्मक संसार में उतरने ही वाला था कि मुझे अपना गांव याद आया। वे किसान याद आए जिन की फसलें खड़ी हैं या कट चुकी हैं। खेतों में पड़ी, वे व्यवस्थित मंच का इंतजार कर रही होंगी, जिससे उस किसान का पेट भरना था, जिसने अपना जीवन लगा कर उन्हें पैदा किया था।
चेतना ने भावनाओं का वरण करने से मना कर दिया। इंसानियत जागी और अपनी तरफ आते उस दुख और विषाद के सैलाब को देखने लगी। शायद परिस्थिति इतनी विषम ना होती, यदि हम एक महामारी न घिरे होते। इन आरामदेह ऊंचे मकानों में बैठकर चिंता और चिंतन के सिवा हम कर ही क्या सकते हैं। उन किसानों का दर्द महसूस करना कल्पना से उस पार की बात है।
मैं उत्तर प्रदेश से आता हूं, एक ऐसे राज्य से जहां निर्वाह कृषि अपने वास्तविक रूप में जिंदा है। पिछले कुछ दिनों से किसानों को खेती करने से ज्यादा, उनकी सुरक्षा में रत रहना पड़ता है। गांव में टोलियां बनाई जाती हैं और वे हर रात अपनी जान हथेली पर रखकर आवारा पशुओं से खेतों की रक्षा करते हुए, अपनी रातें बिताती हैं। यदि आप हमारे क्षेत्र से हैं तो कई ऐसी कहानियों से रूबरू हुए होंगे, जहां इन आवारा घूमते पशुओं ने किसी पर हमला किया और वह अपने परिवार के लिए याद बन गया।
ऐसे में जान पर खेलकर पैदा की गई फसल का यूं प्रकृति के कहर से बर्बाद होते देखना, उनके लिए किसी मृत्यु से कम न होगा। जब कृषि निर्वाह है, तो सामान्य सी बात है कि उनके पास उसे जल्दी से व्यवस्थित करने के साधन उपलब्ध हो ही नहीं सकते। ऊपर से यह महामारी, जो पता नहीं किस क्षण अपना मुंह फैलाए, आपको अपने में समा लेने के लिए तैयार खड़ी है।
सरकारें क्या कर रही हैं और क्या करेंगी, इसका चिंतन उनके ऊपर छोड़ कर फिलहाल हम अपने दायित्वों पर चर्चा कर लेते हैं। यदि आप सक्षम हैं तो आपका दायित्व बनता है कि आप हर उस पीड़ित की सहायता करें, जो आपके क्षमता क्षेत्र में आता हो। यह महामारी तो एक दिन बीत ही जानी है, ये विषम परिस्थितियां शाश्वत नहीं रह सकती।
बचेगा तो बस उस कर्तव्यपरायणता और निष्ठा का निशान जो आपने इन विषम परिस्थितियों के दौरान बनाया होगा। वो जज़्बा जो आपने दूसरों में पैदा किया होगा। वो सांसे जिनके एक हिस्से को आपके द्वारा भी लिखा गया होगा।
हम जीतेंगे, यह तो निश्चित ही है, लेकिन कैसे जीतेंगे और जीतने के लिए लिखी जाने वाली पटकथा कैसी होगी, यह केवल और केवल आप पर निर्भर है। हां! और यह भी आप पर ही निर्भर है कि उस विजय-गाथा में लिखे जाने वाले पात्रों में आप क्या बनना चुनते हैं - एक नायक या ........?
संघर्ष ही एकमात्र विकल्प है और इसकी प्रकृति आप पर निर्भर करती है।
2 comments:
अद्भुत भैया....अद्भुत। 💐
Thank You mitr
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