Saturday, 18 March 2023

रास्ता बीत रहा है।



जब मैंने पढ़ा कि केदारनाथ सिंह ने लिखा है “‘जाना’ हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है।” तो मैं स्वयं को इस पर आपत्ति करने से नहीं रोक पाया। मैं मानता हूं ‘जाना’ नहीं बल्कि ‘बीतना’ हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया होनी चाहिए। जब कुछ बीत जाता है तो उसका अस्तित्व हमेशा-हमेशा के लिए आंखों से ओझल हो जाता है; पुनरावृत्ति की सारी संभावनाएं मर जाती हैं; कोई भी शक्ति उसे वापस नहीं ला सकती, इसे एक रासायनिक अभिक्रिया की तरह समझा जा सकता है जबकि ‘जाना’ में भौतिक अभिक्रिया के गुण दिखाई पड़ते हैं–जाना, में आना अंतर्निहित है; यह भले ही व्याकरणिक विधानों पर खरा न उतरे, पर अनुभव कई बार सिद्धांतों से अधिक महत्व रखते हैं और प्रासंगिकता भी। साथ ही संवेदनाएं और प्रेम किसी समीकरण के मोहताज भी तो नहीं हैं, वे अपनी अंतर्यात्रा में अनेक सिद्धांत और व्याकरण गढ़ते और मिटाते हैं।

Saturday, 11 February 2023

कमलेश्वर में कमलेश्वर की ख़ोज



निदा फ़ाज़ली जी का शेर-

"हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना"

नई कहानी आंदोलन के वास्तविक प्रणेता कहे जाने वाले कमलेश्वर पर बहुत फिट बैठता है।

यदि आप कमलेश्वर के विषय में दुष्यंत कुमार के कहे को पढ़ेंगे और उसके बाद मन्नू भंडारी के लिखे लेख ‘कितने कमलेश्वर’ पढ़ेंगे, तो आपको दोनों में कमलेश्वर की बहुत मुख्तलिफ शख्सियत मिलेगी। दुष्यंत कुमार के कमलेश्वर बहुत ही संजीदा, विनम्र और सामाजिक रुप से व्यवस्थित शख्सियत हैं, वही मन्नू भंडारी के कमलेश्वर मनमौजी, क्रूर और बेअदबी करने वाले मिलेंगे।

अपने लेख ‘कितने कमलेश्वर’ में मन्नू भंडारी जी लिखती हैं—