
अभी भी जब किसी कारणवश छत पर आता हूं तो अनायास ही नजरें तुम्हारे छत और छज्जे की ओर चली जाती हैं। प्रेम से उपजी स्मृतियां अपना रास्ता कभी नहीं भूलतीं। बहुत रोकने के बाद भी आंखों का भाग कर तुम्हारे हिस्से की ओर चले जाना कभी-कभी शर्मिंदगी का सबब भी बन जाता है।
जिस तरह कोई फल खाते हुए पहले मीठा, फिर कसैला और अंत में स्वाद-हीन हो सूख जाता है, उसी प्रकार विलगन की वेदना भी पहले अत्यंत पीड़ादायक, फिर कसैली और अंत में स्वाद-हीन हो सूख जाती है। प्रतीत हो रहा है जैसे हमारे विलगन की वेदना भी स्वाद-हीन हो सूखने की तरफ अग्रसर है। अब तुम्हारे छज्जे पर कोई अपनत्व नहीं दिखता। ऐसा लगता है जैसे सूरज की तीक्ष्ण किरणों ने तुम्हारे छज्जे पर रखे, मेरे इश्क की स्मृति से पैदा हुए अपनत्व को वाष्पित कर कहीं और, किसी अन्य की भूमि पर बरसा दिया है।
कल जब मैं छत पर आया तो उसी स्थान पर किसी अन्य स्त्री को खड़ा देखकर चकित रह गया, सोचने लगा कि क्या स्थान ने नए नायक-नायिकाओं को चुन लिया है? चारों ओर नजरें दौड़ाकर तसदीक़ की और उत्तर नकारात्मक मिला। शायद वह स्त्री अपने रूटीन कार्यों को करते हुए क्षण भर के लिए वहां ठिठक गई होगी, वैसे ही जैसे पहली बार तुम ठिठकी थी और वहां तब तक रुकी रही थी, जब तक हमारे सपनों के देश से तुम्हारा सौदागर तुम्हें लेकर उड़ नहीं गया। आंखों के आलिंगन से शुरू हुई कहानी, आंखों के आलिंगन तक सीमित रहते हुए, आंखों के आलिंगन पर ही खत्म हो गई।
स्मृतियां आज भी उतनी ही उजली और स्पष्ट हैं, लेकिन मेरे जीवन की वर्तमान अधिकारिणी ने उन प्रकोष्ठों की सफाई करके तुम्हारी व तुम्हारे बाद की अन्य सहयात्रियों की स्मृतियों को एक ताबूत में रखकर कहीं गहराई में दफ़्न कर दिया है। वे केवल तभी दिखाई देती हैं, जब बहुत प्रयास करके उन्हें खोद कर निकालने की कोशिश की जाए और यह वर्तमान चण्डी के सामने कम ही संभव हो पाता है। वे आज भी उतनी ही सुरक्षित हैं, जितनी मिस्र के पिरामिड में रखी ममियां। पर इन 3 दिनों में उपजी भावनाओं ने मुझे भी उन तक कभी ना पहुंचने के लिए प्रेरित करने का पूरा प्रयास किया है। तुम्हारे छज्जे की नीरवता ने हमारे विलगन के स्वाद-हीन हो चुके रूप का प्रमाण दे दिया है।
शायद अब मैं दोबारा जब दूर देश से होकर लौटूं तो तुम्हारे छज्जे और छत की ओर नजर ही ना जाए। शायद मैं स्वयं को समझाने में सफल हो पाऊं कि अब हमारी स्मृतियां सूखकर टुंड हो गई हैं, जिस पर अब नई कोपले नहीं उग सकतीं। शायद यही हमारे प्रेम का महापरिनिर्वाण हो और शायद तुमने उस अनाधिकृत अधिकारी को अपने सर्वस्व के लिए अधिकृत कर दिया हो। तुम्हें अंतिम विदा न दे पाने की टीस के साथ शायद यही उचित समय है जब तुम्हें मैं अपने मन के बंधनों से आजाद कर दूं।
शुभे! तुम्हारे प्रेम की स्मृतियां मेरी वर्तमान अधिकारिणी के द्वारा बनाए गए ताबूत में हमेशा के लिए सुरक्षित रहेंगी, पर अब केवल तुम्हीं साक्षात् आकर इन स्मृतियों को बन्द ताबूतओं से आजाद कर सकती हो, जो शायद कभी संभव ही ना हो।
आकाश-भर शुभकामनाओं के साथ अंतिम प्रणाम 🙏
कॉपीराइट©२०२०
3 comments:
💯💯
Kya baat hai sir aap to pakke wale ashiq nikale
Bahut mast kahani hai ye padh kr aanand aa gya
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