Friday, 28 February 2025

महाकुंभ बीत रहा है | RISHI DWIVEDI

महाकुंभ बीत रहा है । RISHI DWIVEDI
 

प्रयागराज रो रहा है, महाकुंभ का महाप्रांगण सुना पड़ा है। देवताओं द्वारा सजाया नगर उजड़ रहा है। गंगा का कृशकाय शरीर आलिंगन करने वाले श्रद्धालुओं के आचमन को विस्मृत कर रहा है। सब लौट रहे हैं तो महाकुंभ भी लौट रहा है और मैं इसका चश्मदीद बना गंगा के एक तीर पर खड़ा रुदन में डूबा इस दृश्य को आत्मसात कर रहा हूं। आज गंगा शिव की जटाएं छोड़ मेरी पलकों से प्रवाहित हो रही हैं। प्रतीत होता है महाकुंभ का अंतिम स्नान मेरे हिस्से आया है और मैं उसके आनंद में हूं। करुणा का आनंद ही संवेदना की घनिष्ठता का साकार रूप है और मैं इससे बचना नहीं चाहता। शिव का लास्य तांडव रुक गया है और तन्वंगी गंगा की धारा दुग्ध धवल रेती पर पुनः श्रांत, क्लांत और निश्चल विश्राम कर रही है।

Wednesday, 25 September 2024

प्रेम में किताबें

                                                  

उसने प्रेम में मुझसे फूल माँगे
और मैंने किताबें दीं

मैंने फूल किताबों के बीच छुपा दिए
और उसने पढ़ते हुए उन्हें चूम लिया

उसने प्रेम में सहेजे
किताबों में मिले सूखे फूलों के टुकड़े
और मैंने सहेजीं

सूखे फूलों से महकती किताबों
में उसकी स्मृतियाँ

हम प्रेमी थे हमने प्रेम किया
उसने फूलों से और मैंने किताबों से।

Thursday, 4 April 2024

तुम्हारा होना | ऋषि द्विवेदी


मैं चाहता हूँ
कि तुम बनो एक विशाल वट-वृक्ष
और दूर तक फैले तुम्हारे वितानों से उतर कर
तुम्हारी लताएँ, जड़ें बनकर फैल जाएँ
मेरे अस्तित्व की धमनियों और शिराओं में

और जब कोई नवागंतुक मुझे समझने हेतु 
खंगाले मेरे चेतन-अवचेतन को
तो तुम पैठी मिलो हर रास्ते-हर मोड़ पर
मेरे होने को परिभाषित करती
बताती कि तुम्हारा होना
मेरे होने की पहली शर्त है।

- ऋषि द्विवेदी