Friday, 22 December 2017

भारतीय समाज, विविधता, अनेकता एवं एकात्मता


भारत का समाज अत्यंत प्रारम्भिक काल से ही अपने अपने स्थान भेद, वातावरण भेद, आशा भेद वस्त्र भेद, भोजन भेद आदि विभिन्न कारणों से बहुलवादी रहा है। यह तो लगभग वैदिक काल में भी ऐसा ही रहा है अथर्ववेद के 12वें मण्डल के प्रथम अध्याय में इस पर बड़ी विस्तृत चर्चा हुई है एक प्रश्न के उत्तर में ऋषि यह घोषणा करते हैं कि

जनं विभ्रति बहुधा, विवाचसम्, नाना धर्माणंम् पृथ्वी यथौकसम्।
सहस्र धारा द्रवीणस्यमेदूहाम, ध्रिवेन धेनुंरनप्रस्फरत्नी।।

अर्थात विभिन्न भाषा, धर्म, मत आदि जनों को परिवार के समान धारण करने वली यह हमारी मातृभूमि कामधेनु

Thursday, 21 December 2017

भारतीय कला और सौंदर्य


कला ही जीवन है। कला का ज्ञान, मानव के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है, यह मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास करके उसे पशुत्व से उपर उठाता है। भर्तृहरि का लिखा हुआ यह प्रसिद्ध श्लोक मानव जीवन में कला के महत्व पर प्रकाश डालता है :-

साहित्य संगीत कला विहीन:, साक्षात् पशु: पुच्छ विषाण हीन:।।

जीवन में सत्य, शिव और सुंदर से साक्षात्कार कराने में इसका अमूल्य योगदान है। आत्मसंतोष एवं आनंद की अनुभूति भी इसके ज्ञानार्जन से ही होती है और इसके मंगलकारी प्रभाव से व्यक्ति के